Book Title: Adhyatma Rahasya
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 32
________________ ३३ अध्यात्म-रहस्य रण, विद्वत्ता एवं क्षमताका पता चलता है, जो उनके अनेक ग्रन्थोंमें प्रद-पद पर प्रस्फुटित हो रही है, और इस लिये पिछले कुछ विद्वानोंने यदि उन्हें 'सूरि' तथा 'आचार्यकल्प' जैसे विशेषणों के साथ स्मरण किया है तो उसे कुछ अनुचित नहीं कहा जा सकता । आप घरेवाल जाति में उत्पन्न हुए थे। आपके पिताका नाम सल्लक्षण, माताका रत्नी, पत्नीका सरस्वती और पुत्रका नाम छाह था। पहले आप मांडलगढ़ ( मालवा ) के निवासी थे, शहाबुद्दीन गौरीके हमलोंसे संत्रस्त होकर सं० १२४६ के लगभग मालवाकी राजधानी धारामें श्रा बसे थे, जो उस समय विद्याका एक बहुत बड़ा केन्द्र थी । बादको आपने ऐसी साधन-सम्पन्न - नगरीको भी त्याग दिया और आप जैनधर्मके उदयके लिये अथवा जिनशासनकी ठोस सेवाके उद्देश्यसे नलकच्छपुर (नाला) में रहने लगे थे, जहाँ उस समय बहुत बड़ी संख्या में श्रावकजन निवास करते थे और धाराधिपति अर्जुन भूपालका राज्य था । इसी नगरमें रहकर और यहांके नेमिनिन * श्रीमदजु नभूपाल राज्ये श्रावकसंकुले । जिनधर्मोदयार्थ यो नलकच्छपुरेऽवसन । (धर्मामृत-प्रशस्ति) * अर्जुनकर्मा तीन दानपत्र क्रमशः सं० १२६७, १२० और १२७२ के मिले हैं।

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