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सन्मति-विद्या प्रकाशमाला समय, वहीं पर उसीसे द्वारा और उसी प्रकारसे सम्पन होगा, इस भविष्य-विषयक कथनसे भवितव्यताके उक्त आशयमें कोई अन्तर नहीं पड़ता; क्योंकि सर्वज्ञके ज्ञानमें उस कार्यके साथ उसका कारण-कलापभी झलका है, सर्वथा नियतिवाद अथवा निर्हेतुकी भवितव्यता, जो कि असम्भाव्य है, उस कथनका विषय ही नहीं है। इसके सिवाय सर्वज्ञके ज्ञानानुसार पदार्थोका परिणमन नहीं होता, किन्तु पदार्थोंके परिणमनानुसार सर्वज्ञके ज्ञानमें परिणमन अथवा झलकाव होता है-ज्ञान ज्ञेयाकार है न कि ज्ञेय ज्ञानाकार । साथ ही, सर्वज्ञके ज्ञानमें क्या कुछ होना झलका है उसका अपनेको कोई परिचय नहीं है, न उसको जाननेका अपने पास कोई साधन ही है और इसलिये सर्वज्ञके ज्ञानमें झलकना न झलकना अपने लिये समान है- कोई कार्यकारी नहीं। ऐसी स्थितिमें भवितव्यताके उक्त कथनसे पुरुषार्थ-हीनता, अनुद्योग तथा आलस्यका कोई पोषण नहीं होता और न उन्हें वस्तुतः किसी प्रकारका कोई प्रोत्साहनही मिलता है।
मूल पधमें जिनशासनके रहस्यको अधिगत करनेके फलस्वरूप अहंकृतिके त्याग तथा भवितव्यताका आश्रय लेनेकी बात कही गई है, इसीसे जिनशासनकी दृष्टिके साथ इस विषयको इतना स्पष्ट करके बतलानेकी जरूरत पड़ा है। जिससे वद्विरुद्ध कोई गलत धारणा कहीं जड़ान पकड़ सके,