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(४२) न्य पुरुषो प्रतिपादित दोवाथी अनेक स्थळमां परस्पर विरोधी-. पणे भिन्न भिन्न रीते पदार्थनुं प्रतिपादन करे छे. एटले प्रा-- गमोज अविश्वसनीय होइ तेनाथी आत्मा छे ए मान्यता संभवे जा क्यांथी ? अतएव अात्मा नथी ए सत्य छे. तथा जेम मदिरा मादक पदार्थना संयोगथी पेदा थाय छे तेम पांचभूतना संयोगथी आत्मा पण आविर्भत थइ जलना बुबुदो जेम जलथी प्रगटी तेमां तेनो विलय थाय छे एवं आत्मानो पण पांचभूतोमाज विलय-नाश थाय छे. अतएव परिणामे आत्मा चैतन्य नामक कोइ पदार्थ स्वतंत्र नथी ज ___ आ वादने निर्मूल करवा हरिभद्रसूरिजी उपरोक्त श्लोकना प्रथम चरणथी प्रतिपादक शलीए वदे छे. " आत्मास्ति" आत्मा-चैतन्य एक स्वतंत्र पदार्थ छे, नहीं के अमुक पदार्थना संयोगजन्य आ आत्मानी अस्तिता केवल शास्त्रो ज कथन नथी करता, किन्तु प्रत्यक्ष आदि प्रमाणो पण तेनी अस्तिता सिद्ध करे छे ते आ प्रमाणे
आत्मा शरीरथी एक भिन्न पदार्थ रूपे छ ज, ते न होय तो ' आत्मा के के नहीं ? ' एवो संशय थाय नहीं. संशय ए ज्ञानरूप छे, अने ज्ञान आत्मानो गुण छ, केवल शरीरमां अथवा खाली इन्द्रियोमां ते गुण देखातो नथी. निदान केशरीरजन्य जो गुण होय तो मृतकलेवरमां ते गुणनुं दर्शन थ, जोइये अने इन्द्रियोनो ते गुण होय तो अमुक इंद्रियना विध्वंस