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तो नथी ने परिणामे निश्वयथी मोक्षरूपी वृक्षनुं बीजभूत जिनमंदिररूप कार्य बने छे. "" स्पष्टीकरण
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शास्त्रमां द्रव्यपूजा अने भावपूजा एम वे प्रकारे पूजा कही छे. तेमां जल, चंदन, पुष्प, नैवेद्य आदिथी पूजा, अंगरचना, मंदिर बनावj, प्रतिमा भराववी, अलंकारो चडाववा, उत्सवो करवा, रथयात्रा विगेरे सर्व द्रव्यपूजा कही छे. आ पूजा करवाना अधिकार गृहस्थने छे, परंतु सर्वत्यागीने अधिकार नथी: कारण के तेमां आरंभ छे. सर्वत्यागी आरंभना त्यागी छे पटले तेओने या कार्यमां आरंभथी त्रास थाय अने प्रतिज्ञानो भंग थाय. गृहस्थ आरंभना त्यागी नथी. कुटुंबादि अर्थे अने जीवन व्यवहार अर्थे स्नान, पुष्प आदिनो आरंभ करे छे, एटले तेओने द्रव्यपूजा करवानो आदेश आवश्यक छे, ज्यारे भावपूजानो अधिकार साधुओने छे ए ज वातनुं अनुमोदन उपाध्यायजी ज्ञानसारमां करे छे :- " द्रव्यपूजोचिताभेदोपासना गृहमेधिनाम् । भावपूजा तु साधूनामभेदोपासनात्मिका " ।। १ ।। अतएव अहीं हरिभद्रम्रिजी जिनमंदिर माटे भार मेलीने कहे छे के - " एतदिह भावयज्ञः " आ जिनमंदिर बंधावनुं ते अहीं भावयज्ञभावपूजा कही छे, यद्यपि जिनमंदिर एद्रव्यपूजांतर्गत के तो पण अहीं यज् धातु परथी यज्ञ शब्द बन्यो छे एटले यज् धातु देवपूजा अर्थनो वाचक छे; अने द्रव्यस्तत्र पण शास्त्रदर्शित