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( ६९ ) विशेष जाणवू के अहीं जे विधि कहेवामां पावशे ते 'तद्विदों' बाल आदि वर्गनुं स्वरूप जाणकार एवा उपदेशक पुरुषोने ज खास करीने उपकारी थशे. शिवाय अन्य लोकोए तो आ विषय समजी ध्यानमा राखवानो छे. आटलो खुलासो करी हवे आचार्यश्री जणावे के के" पराधीनता अने तेना हेतुप्रो." ___ आ विधि हु स्वतंत्र कल्पनाथी नथी कहेबानो, किन्तु "सिद्धान्ततत्वज्ञैः” सिद्धान्त-आगमशास्त्रोना जाणकार, पारंगत एवा श्रुतकेवली भद्रबाहुस्वामी जेवा महापुरुषोए जे रीते पूर्व शास्त्रोमां जणाव्या छे, ते ज विधि "यथोचितं" बराबर बाल आदि वर्गने उपकारी थाय तथाप्रकारे अहीं हुं कथन करीश. मतलब के-या विषयमां ग्रंथकर्ता पोतानी पराधीनता तथा शिष्टाज्ञा परिपालनता दर्शावे छे. शिष्टत्व प्राप्त्यर्थे अने ग्रंथने आदेय बनाववा माटे आ एक उत्तमोत्तम मार्ग छे के जे आचार्यो पूर्वपुरुषना पंथे चाली वस्तु कथन करी पोतानी पराधीनता दर्शावे छे. तथा जे लोको उपदेश अने वस्तुनो निर्देश शास्त्रोमां पोतानी स्वतंत्र मतिकल्पनायो मुख्य करी कथन करे तो ग्रंथकर्ता छद्मस्थ होवाथी अवश्यमेव स्खलित थाय अने दोषमिश्रीत ज व्याख्याओ करे, कारण के ज्यां छद्मस्थो अल्पज्ञ होइ मर्यादित ज्ञान धरावे छे त्यां तेत्रो निर्दोष अने अविरोधी कथन क्याथी करी शके ? परमार्थ के-सदोष तथा विसंवादी ज वस्तुनुं प्ररूपमा करे छे. आ बाजु प्राकृत लोको