Book Title: Shodashak Granth Vivaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Keshavlal Jain

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Page 428
________________ ( ४१७ ) जे ब्रह्म तेनो ज उपरोक्त भाव ते रसभूत पदार्थ छे अर्थात् सारतत्व छे, एटले आ भावनो संपूर्ण विकास थया पछी अवश्य ब्रह्मस्वरूपनो आविर्भाव थाय, अने सर्वज्ञमतमां आ भाव प्राप्त करबो ए ज तत्त्वज्ञमुष्टि छे. परमार्थ ए के - सर्वज्ञना शासननो फलितार्थ छे. ए रीते प्रतिष्ठानी विधि अने तत्संबंधमां खास वक्तव्य का पछी अन्तमां आ संबंधमां अवशेष वक्तव्य कही ग्रंथकर्ता आ प्रकरणनी समाप्ति सूचवे छे. अष्टौ दिवसान् यावत्, पूजाऽविच्छेदतोऽस्य कर्त्तव्या ॥ दानं च यथाविभवं, दातव्यं सर्वसत्त्वेभ्यः ॥ ८–१६ ॥ - मूलार्थ — आ प्रतिष्ठित बिम्बनी आठ दिवस सुधी निरंतर अनेक प्रकारनी पूजा अवश्य करवी अने विभवासारे सर्व प्राणीयोने दान पण जरुर आपवुं. " स्पष्टीकरण " आगल का प्रमाणे विधिसह जिनबिम्बनी प्रतिष्ठा कर्या पछी अवश्यमेव आठ दिवस पर्यंत अष्टप्रकारी, २७

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