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( ३४६) कार्य भने तेनुं कारण मृतिका. भहीं ज्यारे मृतिका पर अरुचि करवाथी, योग्य व्यवस्था अने ध्यान न राखवाथी घटरूप कार्यनो स्वतः विनाश थाय के एज रीते मंदिर भने बिंब ए कार्यों तथा कारीगरो, मजूरो, माल वनावनाराओ, माल लावनारामओ ए सर्व तेना कारणो उत्पन्न करनारामओ के. आथी ज्यारे बंधावनार सामान्य अगर विशेष कारणोथी कारीगरा साथे पैसा आपवा माटे वेश करे अथवा कारीगर बंधावनार साथे क्रेश करे तो परस्पर अप्रीति-वैमनस्य प्रकटे अने परिणामे कारीगरो या करावनारनुं मन खिन्न थाय, एटले बन्ने जणाओ प्रारंभेल मंदिर अने जिनबिंवरूप कार्यमा योग्य ध्यान राखे नहीं, मात्र वेठनी माफक यद्वातद्वा पूरुं करे-करावे आथी ते कार्यनो ज नाश थायः माटे आचार्यदेव कहे छ के-" अप्रीति. "कारीगर साथे अप्रेम करवाथी परमार्थथी भगवान् साथे अप्रेम थाय एम जाणवू. निदान ए के-भगवदाज्ञा के के कारीगरोने योग्य रीते संतोषी मंदिर अने जिनबिंब बनाववा उद्युक्त थर्बु, पण तेओनुं चित्त दुःखी थाय तेम वर्तवू नहीं. आथी ज्यारे कारीगरो असंतुष्ट थाय तेम वर्तन चलावीए त्यारे भगवदाज्ञानु ज प्रथम अपमान कयु कहेवाय, अने भगवदाज्ञानो अनादर करवो ए ज भगवान पर अप्रेमनुं चिह्न दर्शाव्यु के. भगवाननुं बहुमान, सत्कार करीए भने तेश्रोनी भाज्ञानो अनादर करीए ए काइ भगवाननुं बहुमान न