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पवित्र अनुष्ठानोमां मुख्य फल अपवर्गलाभ तथा आनुषंगिक फल देवर्द्धि-प्राप्ति मानेल छे. एटले के मुख्य साध्यभूत मोचनुं लक्ष्य जे क्रियामां प्रविष्ट होय ते क्रियाने तत्वज्ञो लोकोत्तरक्रिया, अने जे क्रियामां आ फलनी उपेक्षा करी गौण फल देवर्द्धि आदिनुं लक्ष्य होय ते क्रियाने लौकिक क्रिया कहे छे. अहीं पलाल भने अभ्युदयफल तेमज धान्य अने अपवर्ग बने मुख्य श्रनुषंगिक फलनी यथार्थ साम्यता होवाथी दृष्टांत - दान्तिकनी घटना बराबर सुघटित थाय छे. सार ए के - लौकिक क्रियाथी केवल अप्रधानफल प्राप्त थाय, ज्यारे लोकोत्तर अनुष्ठानथी प्रधान अप्रधान बने फलोनी प्राप्ति थाय. अप्रधानफल पण एवं लाभ के जेनाथी परिणामे अवश्यमेव प्रधान मोक्षफल थाय ज.
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