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(१०७) मातानी प्रतिक्षणे सेवा करवी, किन्तु एक क्षण पण तेने विसरवी न जोइये; कारण के प्रा मातानी सेवा करवाथी परमार्थतया सर्वज्ञनी बराबर सेवा करी गणाय. अन्यथा प्रभु प्राज्ञानो लोप कर्यो मानवो एम भगवंत पोकारी पोकारीने जणावे छे. __ ए रीते 'मध्यमबुद्धि' ने उपदेश प्राप्या पछी, अन्तमां आ प्रमाणे उपदेश जरुर करवोएतत्सचिवस्य सदा साधो
नियमान्न भवभयं भवति । भवति च हितमत्यंतं,
फलदं विधिनाऽऽगमग्रहणं ॥२-९॥ मूलार्थ-पूर्वोक्त आठे प्रवचनमाता सहित नित्य वर्तनार मुनिने निश्चयथी संसारनो भय होतो नथी अर्थात् संसारनो नाश थाय छे, एवं भविष्यमां पण अतिशे आत्मानुं हितकल्याण थाय छे ने विधिपूर्वक आगमज्ञान पमाडवारूप फल अर्पण करे छे. "प्रवचनमातानी सेवा, सर्वोत्तम फल"
स्पष्टीकरण-पुण्यकामना अर्थे उत्तम जनो कदापि माताने अलग करता नथी, कारण के तेवा वर्तनमा ज पोतानुं श्रेयः तेश्रो समजे. छे, एटले तेयोने अपयश आदिनो भय उपजतो नथी. एवं अहीं पण दृष्टांत समन्वय करता प्राचार्यश्री संक्षेपमा उपसंहार करी जणावे छे के-जे मुनि आ पाठ प्रवचनमातानी