________________
.
(२६६ ) कर्मनो हास थया पछी सत्य उपादेय पदार्थने धारी न शके अने बालजीवोना ज्ञान जेवं विषयप्रतिभास नामे जे ज्ञान तेने पण उल्लंघन करी ज्ञानावरणीय कर्मोना नाशथी ग्राह्यउपादेय पदार्थोने विषय करनारुं अने नितान्त आत्मस्वरूपर्नु खास भान करावनारुं जे ज्ञान आत्मामा प्रकाशमान थाय तेनेज उपाध्यायजी ' आगमवचनपरिणति ' 'आगमसद्बोध' • यथार्थज्ञान' 'सम्यग्ज्ञान' कहे छे. आथी ज उपाध्यायजी अन्यत्र कहे छे-" तज्ज्ञानमेव न भवति यस्मिनुदिते विभाति रागगणः । तमसः कुतोऽस्ति शक्तिर्दिनकरकिरणाग्रतः स्थातुं" ॥१॥ " जेना उदय पछी रागादिकनो समूह प्रकाशमान रहे तो ते ज्ञान ज न कहेवाय, कारण के सूर्योदय थया पछी तेना किरणना प्रकाश सामे शुं अंधकार रही शके खरो ? " अतएव श्रा ज्ञान संसारनी अनेक तरहनी विटंबणाोने दूर करवाने समर्थ एवं निर्दोष बाधा रहित सुंदर पथ्य औषध समान छे. एवं पा ज्ञान जागृत थया पछी उपाध्यायजी महाराज जणावे छ के-ज्ञानजन्य उपादेय पदार्थोनो स्वीकार करवामां अविरिति आदि अंतराय कर्मो-प्रतिबंधको प्राडे आवे तो पण सत्य पदार्थनी श्रद्धामां लेश पण बाधा श्रावती नथी, तथा आगमवचननी परिणति थया पछी प्रकृष्ट सद्ज्ञानावरणीय कर्मोनो नाश थाय अने शुद्ध उपादेयोने स्वीकारनार सद्बोध प्राप्त थाय छे अर्थात् 'तत्त्वसंवेदन' नामे उत्तम ज्ञान जागृत थाय छे.पा ज्ञान थवाथी नित्य तत्त्व पदार्थोने ज उपादेयपणे, स्वीकार्यपणे,