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तदुपरांत काल होय तो आ अभिलाषा न थाय. आथी ज्यारे
आ अभिलाषा थाय त्यारे चरम पुद्गलावर्तकाल छे एवो निर्णय थाय, अने चरम पुद्गलपरावर्तकाल होय त्यारे मा अभिलाषा बने एवो निर्णय करी शकाय. अतएव अहीं शिष्य प्रश्न करे के के-मोक्षनी अभिलाषा चरम पुद्गलावतकालमांज थाय अने अन्य काले न थाय, तेमज चरम पुद्गलपरावर्तकाल शाथी थाय ? श्रानो उतर ग्रंथकर्ता आपे के के जेम कोइ माणसने ज्वर आवतो होय, तेनी शांति माटे औषध आप्यु होय तो पण प्रारंभमां तो ते औषध उलटुं ज पडे छे, पण ज्वरनो समय पाक्या पछी ज्वर शांत थाय छे अने औषध लाभदायक बने छे परंतु समय पाक्या पहेला ते औषध कांइ पण गुण उत्पन्न करतुं नथी, एवं आत्मा पण संसारमा आथडता आथडता दुःख, क्लेश, तापथी कंटाळे अने सुखनो अभिलाषी बने एटले स्वभावतः काले करीने तेनी स्थिति परिपक्व थइ जाय.पा समये अात्माने मोक्ष अभिलाषा जागे एटले तीव्र पापोनो नाश थवाथी अधिक काल पर्यंत संसारमा आथडवानुं बंध थइ जाय छे. अतएव प्रा समयने महर्षिो अंतिम पुद्गलपरावर्त भवस्थितिकाल एवं उपनाम मापे छे. परमार्थ ए केआंबाओ वर्षमां अमुक समये ज पाके, स्त्रीओ अमुक कालेज पुत्र पेदा करे तेमां हेतु शो ? आर्नु समाधान समय-परिपाक सिवाय बीजुं शुं होइ शके १ ते ज प्रमाणे अहीं पण समय-परिपाक सिवाय बीजं कांइ पण कारण नथी. आथी ज ग्रंथकार