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(११५) खास लक्ष्यमा राखवा. बुध तेज जाणवो के-जे उपरनी बनावट अथवा तथाप्रकारनी विशिष्ट क्रियाना वेशना आडंबरथी न रंगाय, किन्तु साचा झवेरीनी माफक पाणीदार हीरा-मोतीनी परीक्षा करे-स्वीकारे. अत: बुधजन उपरनो वेश देखी राजी न थाय, ते तो वेशविडंबकोमां पण छे. एवं उत्कृष्ट त्याग, वैराग्य के क्रियाओ देखीने पण खुश न थाय, ते सर्व जमाली, गोशालो के निह्नवोमां पण हती, होय छे; किन्तु क्रिया अने वेश साथे प्रभुना वचननो आदर, प्रेम तथा भक्ति केटली छे ? ते ज तपासे छे ने तेनाथी ज मुग्ध बने छे; कारण के पूर्वे कह्या प्रमाणे विधि-निषेधनुं प्रतिपादन करनार जे सर्वज्ञ भगवंतनुं भागमरूप वचन तेनी आराधना करवी ते ज मौलिक धर्म कह्यो छे. भावार्थ एटलो के-आगमानुसारी आगमदर्शित मार्गमा प्रवृत्ति करवी, आगमना एक वाक्यने पण बाघ न आवे तेम हेयनो हेयरीत्या जाणी परित्याग करवो अने उपादेयनो उपादेय जाणी आदर करवो ते ज परमार्थ धर्म जाणवो. अर्थात् उत्कृष्ट क्रियानी आराधना अने उत्कृष्ट तप के चारित्रनुं पालन आत्मा सर्वज्ञना एक वचनथी. पण उलटो चाली करे तो ते पलालपुंज बराबर निर्माल्य ज समजवु. निदान के-भगवानना वचननुं पालन करवाजमां ज सम्यक्त्व, श्रुत अने चारित्र ए त्रणेनी साफल्यता समजवी. अतएव भगवाने "कडेमाणे कडे" ए सूत्रनी नहीं श्रद्धा करनार उत्कृष्ट चारित्री जमालीने पण निह्नव कह्यो. वळी आ वचनथी उलटी गति करवी, स्वमतिने पागल करी वचननो लोप करवो