Book Title: Shodashak Granth Vivaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Keshavlal Jain

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Page 413
________________ ( ४०२) ज करवू, जेथी अविधि के अवज्ञानो संभव न रहे अने शास्त्राज्ञानो लोप न थाय ए खास लक्ष्यमा राखq. आटलो निर्देश कर्या पछी हवे जिनप्रतिमा केवी रीते स्थापवी ए वात दर्शावे छे. न्याससमये तु सम्यक् ___ सिद्धानुस्मरणपूर्वकमसंगम् ॥ सिद्धौ तत्स्थापनमिव, कर्त्तव्यं स्थापनं मनसा ॥ ८-१२ ॥ मूलार्थ--जिनप्रतिष्ठा काळे मंत्रस्थापन समयमां मनःसंकल्पथी सम्यक्तया सिद्धभगवानना स्मरणपूर्वक अने असंगपणे तेमां ज लीन बनी मुक्तिमा जेम सिद्धोनी स्थिति छे तेम सत्-चित्-आनंद रूपनी स्थापना मूर्तिमां नमस्कारमंत्र साथे करवी. " पष्टीकरण" मूर्तिमां ज्यारे मंत्रस्थापन करवो होय ते समये एटले मूर्तिमां आ वीतराग देव छे एवी कल्पना स्थापवी होय त्यारे, ज्यां सुधी विधिविधान सह अनेक जनसमूह समक्ष मूर्तिमां मंत्रस्थापन सह आ मूर्तिमा स्वेष्ट देव छे एवी कल्पना न थाय त्यां सुधी अन्य सामान्य जन तेनी पूजा आदि कार्योमा प्रवृत्त थाय नहीं, माटे प्रतिष्ठाकर्ताए ज्यारे

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