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( ३६९ ) प्रशंसा थाय. त्यारबाद दश दिग्पालो, चार लोकपालोनी स्थापना करी तेनी पूजा-सन्मान आदि करवा, तेमज बाकी अन्य देवताओनी पण पूजा-सन्मान आदि करवा एटले बलि-बाकूल आदि अर्पण करवा. अत्र केटलाकोनी एवी दलील छ के-देवताओ असंयमी होवाथी तेओनी पूजा शा माटे करवी ? केमके तेओनी पूजा करवाथी असंयमपणानुं पोषण थाय छे. जो के आ दलील देखावमा घणी सुंदर छ, तो पण भ्रमजनक होवाथी आचार्यश्री आ भ्रमर्नु निरसन आ प्रमाणे करे छे. अहीं जे 'बिंब' नी प्रतिष्ठा कही ते 'बिंब' ना मालीक तीर्थकरदेव छे, अने तीर्थकरदेव देव, असुर, विद्याधर, मनुष्य, जानवर आदि सर्व जीवोने पूज्यअभ्यर्चनीय छे. आथी जेम राजा गादीनशीन थाय त्यारे सर्वनो उचित सत्कार करी सर्वने खुश राखवामां आवे छे, सर्व प्रजाने हर्षनुं कारण थाय छे तेम तीर्थंकरदेवनी मूर्ति पण ज्यारे गादीनशीन थाय त्यारे सर्वनो उचित सत्कार करवो आवश्यक छ, जेथी निर्विघ्न कार्य समाप्त थाय. अतः अविरति एवा देवी-देवताओनी ते समये पूजा करवी ए काइ अघटित नथी किन्तु सुघटित ज छ, तथा दश दिग्पालो, चार लोकपालो सम्यग्दृष्टि अने महर्द्धिक देवताओ छे, अतएव तेओ आपणा समानधर्मी-साधर्मी बन्धु होवाथी, वळी मिथ्यादृष्टि देवताओ पण द्रव्यथी साधर्मिक बन्धु होवाथी प्रतिष्ठा
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