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गीमां मंदिर बंधाववारूप कार्य कर्यु, अने अमुक तीर्थयात्रादि कार्यों कर्या नथी' - या प्रमाणे विचारो करी अने ते विचाराने वर्तनमां मूकी वृद्धि करवा. या रीते करवाथी जैनशास्त्रमां या जिनमंदिररूप कार्य परमशस्त - प्रधान
कधुं छे.
" स्पष्टीकरण "
प्रथम तो मंदिर बंधावनारे उपर जे भाव दर्शाव्यो तेने प्राप्त करी तेनुं संरक्षण करवुं. त्यारबाद या भावनी वृद्धि केम याय तेन प्रकार अहीं दर्शावे छे. उपरोक्त भावनी वृद्धि करेला कार्यनुं अवलोकन करी 'अहो में मारा आ क्षणिक जीवनमां एक मंदिर बंधावी लक्ष्मी चरितार्थ करी.'
प्रमाणे अनुमोदना करी -करवी अने 'अद्यापि मंदिरना अंगभूत अन्य कार्यो अथवा तीर्थयात्रा, संघ, उपाश्रय आदि कार्यो कर्या नथी पण भविष्यमा मारे अवश्य करवा छे.' या रोते नहीं करेला कार्योनो मनोरथसंकल्प करी भावनी वृद्धि करवी परंतु या विचारो करी खाली देखाव करवा नहीं, किन्तु सुत्रवसरे तेने प्रवृत्तिमां मूकी पवित्र आशयवृद्धि करवी ए ज भाव ग्रंथकर्ता ' विधानात् ' ए पदथी दर्शावे छे. अहीं टीकाकार यशोभद्रसूरिजी भावनी वृद्धिनो उल्लेख करे छे. " प्रशान्ताः सुगतिं यान्ति, संयताः स्वर्गगामिनः । शांतायतन कर्तृणां, सदा पुण्यं प्रवर्द्धते ॥ १ ॥ " " प्रकृतिशान्त श्रात्माओ