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(२९४) उदारता आदि गुणोनी अपेक्षा होय छे ते ज गुणोनी जिनपूजा, गुरुसेवामां पण आवश्यकता के अने आ क्रियानी निर्मलता सिद्धान्तवचन परिणमवाथी, तेना पर सद्भाव प्राप्त थवाथी ज थाय छे. तेम ज शास्त्रकार आचार्य कहे छे केसबुद्धिना हेतुभूत पुण्यविपाकनो ज्यारे उदय थाय त्यारे ज जिनेश्वरनां आगममां अपूर्व श्रद्धा प्रगटे, अने पूर्व जे प्रमाणे महादान, इष्टपूजा अने सत्गुरुसेवार्नु स्वरूप कयुं छे ते प्रमाणे मनुष्योने अविरोधपणे या शुभ क्रियायोनी बराबर प्राप्ति थाय छे. या प्रमाणे एक ज क्रिया अन्य क्रियाने बाधा न उपजावे तेवी ज्यारे प्राप्त थाय त्यारे ज ते लोकोत्तरक्रिया कहेवाय, अने अन्य क्रिया साथे एक विरोध करनारी प्राप्त थाय तो ते लौकिकक्रिया कहेवाय. निदान ए के-उपर दर्शित अविरोधीनी विधिसह क्रियानी प्राप्ति आगमवचन परिणमवाथी अने महापुण्योदयथी, प्रत्येक क्रियानो परस्पर सुघटित संबंध साचववाथी तेम ज विधिनो अनुराग धारवाथी थाय छे.
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