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(१२५) करता पण उत्कृष्ट रत्नरूप छे, कारण के आ वीतरागदेवथी ज आत्माने एकान्त उपशम-शान्तरसनी प्राप्ति थाय छ, अने महर्षियोए ा उपशमरसनी प्राप्तिने ज योगियोनी माता तथा निर्वाण-मोक्षफलदायी कही छे. " चिंतामणिनी उपमा "
स्पष्टीकरण-अत्र भगवाननी उत्कृष्टता दर्शाववा आचार्यश्री सर्वतो सुंदर दृष्टांत पापी तेमनी आराध्यता बराबर सिद्ध करे छे. भगवान सवतोश्रेष्ठ होवाथी अद्भूत आश्चर्योत्पादक दृष्टांत साथे ज तेमनी कांइक साम्यता दर्शाववी ए पाठको माटे सरलता गणाय. भूतल पर चिंतामणि सर्वोत्तम पदार्थ मनायो छे. आ रत्न जड छतां तेनी सेवा करनारने अभिष्ट फलो तेना मालिक (अधिष्ठायक) देवता अर्पण करे छे.एवं आ भगवान पण पोतानां बहुमान, भक्ति, श्रद्धा, आज्ञापालन करनारने पण आ लोक तथा परलोक संबंधी सर्व इष्ट पदार्थों पूरण करे छे. यद्यपि भगवान वीतराग होवाथी अभक्त, अपूजक, अश्रद्धालु सामे क्रोध अने आराधक-पूजक सामे प्रेम दर्शावता नथी. तेश्रो तो सर्व जगतने समदृष्टिए ज निहाळे छे, अन्यथा भगवंतमां वीतरागपणुं ज न कहेवाय; तथापि चिंतामणिनी भक्तिथी आकर्षायेल तेना मालीक देवता सेवकनी कामनायो पूरे छे. एटले आ अभिष्ट सिद्धियो चिंतामणिना
आलंबनथी ज प्राप्त थइ परंतु परमार्थ रीते तो चिंतामणि ज अर्पण करे छे एवो व्यवहार जगतमा प्रवो छ, तथाप्रकारे जिनप्र