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( ४०९ ) एवी सरलताथी माया अने जेम सेतुबंधथी जल रंधाय तेम संतोषरूपी माटीथी लोभरूप रौद्र जलसमूहनो रोध करवो." अहीं क्रोधादि ज्वालाओने बूझावनार, उदयने रोकनार क्षमा आदि भावनो अहर्निश विचार करवो अत्यावश्यक योगियोए कह्यो छे, कारण के एम करवाथीज परमात्म संबंधी भावनी नितान्त वृद्धि अने आत्मिक गुणनो विकास थाय छे. आपणा घरनी मिल्कत अन्य कोइ दबावी दे तो तेना सामे सख्त उपायो लेवाथी-झझूमवाथी ज ते मिल्कत आपणा हाथमां आवे, परंतु तेवा समये सहनशीलता राखवाथी अगर कायरता करवाथी मिल्कत पाछी आवे नहीं किन्तु थोडीघणी होय ते पण आपणी निर्बलता देखी अन्य शत्रुओ पडावी जाय. क्षमा आदि विचारनुं स्वरूप तत्त्वार्थभाष्यमां उमावातिवाचकजी आ प्रमाणे दर्शावे छे. “क्रोधादि शांतिनो उपाय"
“क्रोधनिमित्तस्यात्मनि भावाभावचिन्तनात्" कोइ पण मनुष्य आपणा पर ज्यारे क्रोधाविष्ट थाय त्यारे विचार, के-आ मनुष्य मारा सामे क्रोध शा माटे करे छे ? में तेनुं कांइ पण नुकशान करी तेना साथे कदापि विरोध कयों छ ? अथवा प्रतिकूल वर्त्तन में आचर्यु छ ? आ रीते विचार करी यदि जो में अपराध कर्यो छे, विरुद्ध वर्तन कर्यु छे, नुकशान कर्यु छे तो तेनो जे क्रोध छे ते व्याजबी ने योग्य छ; अने मारे ते अवश्य सहन करवू जोइए कारण के-आ गुन्हानी शिक्षा