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(१२ ). तो स्वममां पण पोताना पुत्रनुं अहित नथी करती-विरोधी नथी बनती. या लोकमां पूर्ण कल्याण करवा साथे परलोकमां नितान्त कल्याण ज करे के एटले ा माताने सर्वतोश्रेष्ठ केम न कहेवी ? अवश्य उत्तमोत्तम माता ज कहेवाय. " समितियो? ___ अहीं समितिनुं स्वरूप शास्त्रमा या प्रमाणे दर्शाव्यु छ" प्रविचाराप्रविचारात्मिका समितिः ॥"जे क्रियामां कर्मबंधक खोटी प्रवृत्तिनो आत्मा रोध करे अने कर्मक्षयकारक प्रवृत्ति करे ते समिति " हिंसा, झूठ आदि चेष्टामोथी नितान्त कर्मबंध ज थाय छे, माटे तेपांथी देह आदिने रोकी कर्मनिर्जरानी हेतुभूत समितिरूप क्रियामां आत्माने स्थापवो. एटले मार्गमां गमन करवा पूर्वे बीजी तरफना ध्यान, विचारो अने वार्तालाप आदिने रोकी केवल साडात्रण हाथ जमीनमां दृष्टि राखी जीवोनो बचाव करी गमन करवं ते ईर्यासमिति १, अन्यनी निंदा के दुःख न उपजे, पदार्थर्नु यथार्थ स्वरूप कथन कराय, नितान्त अन्यनुं हित थाय अने परिमित शब्दो जेमां होय जेथी खुली रीते अर्थबोध थाय ए रीते भाषानो उच्चार करवो ते भाषासमिति २, आधाकर्मी आदि ४२ दोषो न लाग्या होय एवा आहारादि ग्रहण करवा ते एषणासमिति ३, वस्त्र-पात्र आदि कांड पण चीज प्रथम दृष्टिथी बराबर निहाली, रजोहरणथी प्रमार्जी बाद लेवी अथवा भूमि पर मूकवी ते आदानभंडमत्तनिक्षेपणसमिति ४, मळ, मूत्र, श्लेष्म