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(३३६) प्रथम आचार्य समीपे जिनेश्वरोना गुणो श्रवण करी.शुद्ध बुद्धि प्राप्त करी मनुष्यनुं मुख्य कर्म अने जन्मनुं प्रधान फल आ सिवाय अन्य नथी एवी भावना धारण करे, तेम जा भूमंडलमां अनन्तगुणराशी जिनेश्वरदेव छे तेथी तेमना बिंबनुं दर्शन पण सुखदात थाय के अने आ बिंब करावनारनुं परम आत्मकल्याण थाय छे, माटे मोक्षपथना स्वामी अने मोक्षदर्शक जिनेश्वरोना गुणोनुं बहुमान. आदरसत्कार, प्रीतिपूजा विगेरे कार्यों करवा. मोक्षार्थी-मोक्ष माटे प्रयत्न करनार कुशल आत्माए अवश्य प्रयत्न करवो उचित छे. निदान ए के-जिनेश्वरोनुं बहुमान पूजा आदि करवाथी भवि आत्माना हृदयनी निर्मलता थाय, तथा शुद्ध भावनावडे अवश्य शुभ पुण्योनी परंपरा वधे छे ने अन्तमां आत्मा सिद्धिपदने पामे छे. आ विचारो, आ भावना प्रतिमा करावनार अथवा भरावनारना हृदयमां अभूतपूर्वपणे रमी रही होय एटले ते आत्मा अवश्य पोतानी निर्मलता साधी शके. वळी प्रतिमा बनावनारे कारीगरनो सुअवसरे समुचित सत्कार करी पोतानी शक्ति अनुसार संपत्ति आपवी, आम न बनी शके तो प्रथमथी तेनुं मूल्य ठरावी पाछळथी ठराव्या करतां अधिक पैसो अापी कारीगरोने खुश करवा जेथी प्रतिमा आनंद, उत्साह अने आत्मनिर्मलताकारक जरुर बने. " प्रतिष्ठा क्यारे करावे ?"
ए रीते निपजावेल अगर अन्य स्थानथी आवेल जिन.