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(३५५) जिनबिंब आदि धर्मकृत्यो करवा ए ज शास्त्रानुसारी भने विशुद्धतर के.
जिनबिंबनी प्रतिष्ठाकरण विधि प्रमे कहीशुं एम सातमा षोडशक प्रकरणांतर्गत द्वितीय श्लोकथी ग्रंथकों कही गया हता ते माटे अहीं ते संबंधमां विशेष हकीकत दर्शाये थे. मन्त्रन्यासश्च तथा,
प्रणवनमःपूर्वकं च तन्नाम ॥ मन्त्रः परमो ज्ञेयो,
मननत्राणे ह्यतो नियमात् ॥ ७-११॥ मूलार्थ कर्तव्यपणे अभिष्ट एवा जिनबिमां ॐ भने 'नमः' ए पदपूर्वक चोवीश जिनांतर्गत कोइ पण नामरूप मन्त्र स्थापन करवो, कारण के 'मन' धातु मनन-त्राणरक्षण अर्थमा होवाथी उपरोक्त नामरूप अवश्य ज्ञानादिनुं रक्षण करे छे; माटे अहीं नाम-स्थापनरूप मंत्र एज परम मंत्र जाणवो. " स्थापनाविधि-मंत्रन्यास"
स्पष्टीकरण-कारीगर पासे शास्त्रोक्त नियम प्रमाणे सुंदर भने अभीष्ट जिनबिंब निपजाव्या पछी प्राचारनिष्ठ