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अर्थात् मुख्य फल ग्रात्म-निर्मलताने आपती नथी. " " श्रागमवचन' मां जेमोने भ्रांतभाव प्रगट थयो होय तेत्रो ज दानादि सर्व धर्मो विधिभावथी सेवे. या वात प्रथम आपणे तपासी गया, परंतु जेमोने भागमवचन पर एकान्त श्रद्धा होय तेत्रो दानादि धर्मो क्या प्रकारे स्वीकारे ते वातनो खुलासेा ग्रंथकार करे छे.
विविसेवा दानादौ,
सूत्रानुगता तु सा नियोगेन ॥
गुरुपारतंत्र्ययोगा
दौचित्याचैव सर्वत्र ॥ ५–१२ ॥
मूलार्थ - सर्वागशुद्धिपूर्वक दानादि कार्योंमां प्रवृत्ति करवी तेनुं नाम विधिसेवा. सिद्धान्तमां बतावेल विधि से - वानी प्राप्ति तो निश्चयथी गुरुप्राज्ञाने प्राधीन रहेनारने न थाय छे, अने ते विधिसेवावान् दीन आदिमां सर्वत्र औचित्यतापूर्वक ज प्रवृत्ति करे छे.
" स्पष्टीकरण "
जिन भगवानना वचन पर श्रद्धा राखनार जे कांह दान, पूजा आदि कार्यो करे ते जिन भगवंते जे प्रकारे करवानुं कां होय ते प्रमाणे विधिपूर्वक करे, अथवा जेश्रो विधिथी करता होय तेओने आधारे करे, तेमज विधिथी करवानी दृढ इच्छा राखे; किंतु स्वतंत्र - स्वबुद्धिना आधारे न करे. एटले