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( २५० नियमेन भवति पुंसां
लोकोत्तरधर्मसंप्राप्तिः ॥ ५-१॥ मूलार्थ-ए प्रमाणे “ औदार्यादिक" चिहो सहित लौकिक धर्मनी सिद्धि थया पछी अथवा सामान्य धर्म ( लौकिक धर्म) पाम्या पछी ‘भव्यात्मानोने' निश्चयथी " लोकोत्तरतत्त्व " नी प्राप्ति थाय छे. "स्पष्टीकरण"
उपाध्यायजी कहे छे के आगळना प्रकरणमा लिंग सहित सामान्य प्रकारे धर्मसिद्धि बतावी, आनुं फळ एज के विशेष गुणो अने विशिष्ट धर्म प्राप्त थाय. खरंए छे के-सामान्य गुणो अने सामान्य धर्म पाम्या पछी विशेष धर्म तथा विशेष गुणोनो लाभ थाय, एज वात अहीं दर्शावे छे. ___ चोथा प्रकरणमा लौकिक धर्म अने नीतिनिपुणता पामवानो जे प्रकार दर्शाव्यो ते प्रमाणे वर्तन करवाथी अवश्य प्रात्मा सामान्य धर्म तथा " औदार्य, ""दाक्षिण्यता" आदि लिंगो पामी शके छे, परंतु . ा धर्मरुचिमां लौकिक अने लोकोत्तर धर्मनो विभाग न होवाथी तेने शास्त्रकर्ता सामान्य धर्म दर्शावे छे. एर्नु कारण एटलुंज के आ परिणामथी आत्मतत्त्व- भान उपजी शकतुं नथी किन्तु लौकिक सुखनी वासनामोने जते तृप्त करे छे, तो पण आ परिणामद्वारा प्रास्ते श्रास्ते आत्मा धर्मना उंडा स्वरूपमां उतरी शके छे. अतएव ग्रंयकर्ता