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(३७७ ) " प्रतिष्ठा कोनी ?"
आ प्रतिष्ठा कोनी ? अष्टकर्मनो नाश करी मोक्षे गयेल एवा परमेश्वरनी आ प्रतिष्ठा कराय छ अर्थात् बनावेल जिनबिंबमां ते परमात्माने अमे स्थापीए छीए, एम जो कहो तो आ उत्तर केवल माटीनी पोली भिंत जेवो छ कारण के जे परमात्मा मोक्षमा बिराजे छे, जेओए आठ कर्मनो नाश करी संसार दूर कर्यो छे तेओ गमे तेवा विशिष्ट मंत्रोना अनेक संस्कार करवा छतां अहीं उतरी शकता नथी. यदि मंत्रोना संस्कारथी तेओ आवता होय तो तेओ मुक्तसिद्ध थया छे ए कथन भ्रममूलक गणाय. सिद्ध तो ए ज कहेवाय के जेओ फरीने अहीं आवे नहीं. आ हेतुथी "सिद्धनी प्रतिष्ठा” आ उत्तर भ्रमनाशक न गणाय. अतएव यदि एम कहो के-संसारवर्ती कोइ देवजातिमा रहेलनी प्रतिष्ठा करीए छीए, तो आ उत्तर पण केवल युक्तिखंडित छे. हेतु ए के-संसारवर्ती कोइ देवजाति विशेष सर्वदा एक ज स्थान पर स्थित थइ शकती नथी. ए तो संसारी होवाथी अन्यत्र अन्यत्र गमनागमन अवश्य करे, एटले मंत्रादि संस्कारविशेषद्वारा आ संसारवर्ती देवजाति विशेषनी स्थापना ए तो नितान्त अघटित छे, धारो केकदाचित् कोइ समये आ देवजाति विशेष अहीं आवे छे अर्थात् मूर्तिमा पोतानो सद्भाव दर्शावे एतावन् मात्रथी कांड प्रतिष्ठानी सिद्धि न गणाय, प्रतिष्ठासिद्धि तो त्यारे ज