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स्पष्टीकरण-अत्र आचार्यश्री योग्यने योग्य उपदेश आपवाथी वक्ता-श्रोता उभयने शुं लाभ थाय एवातनो खुलासो करे छ. जेम समय अने प्रकृतिज्ञ उत्तम वैद्य रोगीना रोगर्नु बराबर निदान करी औषध आपी उभयने महान् लाभ करे छे. एवं अहीं पण उपदेशक धर्मगुरु आगल कह्या प्रमाणे बाल आदि वर्गनुं यथास्थित स्वरूप ध्यानमा राखी तेरोनी प्रकृति अनुकूल अने ते पण केवल परोपकार बुद्धिए, के जेमा स्वार्थभावनो अंश न होय ते रीते यदि धर्मोपदेश करे तो अत्र ग्रंथकार कहे छे के " विधिवदिह" एटले विधिपूर्वक बाल योग्य बालने, मध्यम योग्य मध्यमने अने बुध योग्य बुधने ए रीते उपदेश आपे तो वक्ता नितान्तेन श्रोताने धर्मपर श्रद्धा उपजावे छे. परमार्थ के-बाल विगेरे जीवो तथाप्रका. रनो योग्य उपदेश श्रवण करी स्वनिष्ठ बालपणुं छोडी मध्यम तथा बुधपणुं प्राप्त करे छे, जेथी तेस्रो पोतार्नु कल्याण सारी रीते साधी शके छे. प्राथी आ जीवो आवा प्रकारना उपदेशना बलथी सन्मार्गगामी उत्तमधर्मी बनी परिणामे सम्यक्त्व पामे छे अर्थात् शुक्लपाक्षिकपणानी दुर्लभ स्थिति प्राप्त करे छे. एवं वक्ता पण अनेक जीवोने धर्म प्रमाडी पोतानुं अभूत्पूर्व कल्याण करे छे. प्राचार्यश्री कहे छ के–'नियमतो' भावा उपदेशयी निश्चयेन बक्कामो श्रोताने बोधिलाभ पमाडे. छे. टुंकमां प्राथी श्रोतामो उत्तरोत्तर पोतार्नु कल्याण साधवा शीखे छे. ॥