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तथा बाह्य कठिन आचारो निहाळी खुशी थवा साथै धर्म पामे छे, तेनुं मुख्य कारण या छे. प्रथम तो आ लोको खानपान, गाडी, वाडी ने लाडीनी मोजमजाहमां, कपडा अलंकारोमा, शरीरनीं शुश्रूषामांज आनंद माने छे, जेमां अतिकष्ट के अल्प कष्ट होय तेवी क्रियाथी, आचारोथी धुजी उठे छे, पोताना आत्माने लेश पण कष्ट थाय तेनाथी त्रास पामे छे, अशक्य अनुष्ठानो माने छे, आाथी जे लोको कष्टसाध्य दुर्बह क्रिया के आचारो पालता होय तेना दर्शनमात्रथी या लोको ' अहो ! महान भयंकर अशक्य दर्वा आ लोको धर्मसेवन करी रह्या छे.' एम उच्चारी नमी पडे छे, गळगळा थइ जाय छे. बहु बहु प्रशंसा करे छे. मुनियोना बाह्याचारो प्रति आ लोको मानबुद्धि धारे छे. अतएव उपदेशके पण या लोकोने धर्म पमाडवा या लोकोनी बुद्धि अनुकूळ उपदेश आपको लाभकारी गणाय. ते उपदेश आ रीते आपवो.
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11 बाल उपदेश
जैन मुनियोनो एवो आचार छे के - शिरमां कोइ विशेष दर्द- पीडा न होय तो छ छ मासे अवश्य साधुए हाथवडे पोताना केश उखेडी नांखवा - लोच करवो. यदि विशिष्ट पीडा थती होय तो एक एक महिने अनाथी मुंडन कराव अने अधिक दर्द थतुं होय तो उपरउपरथी पन्नर पर दिवसे केशो कतराववा. गमे तेवी कठण शीत या गरमी पडती होय, पत्थर, कांकरा के कंटकवाळी जमीन होय, लांबी