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उपर " भावा मंदिर आदि कार्योमा क्लेशादि न थाय तेम वर्तन करवू." पा प्रसंग दर्शावी गया. एज प्रसंग उपर फरी भहीं जणावे छे.
एष द्वयोरपि महान्,
विशिष्ट कार्यप्रसाधकत्वेन ॥ संबंध इह क्षुण्णं,
न मिथः सन्तः प्रशंसन्ति ॥ ७-५॥ मूलार्थ-पूर्वे कहेल चित्तजन्य क्लेशामावरूप संयोग बांधनार अने बंधावनार बभेने विशिष्ट कार्यनो सिद्धिकारक होवाथी महान् उत्तम संयोग कहेवाय; कारण के-मंदिर बांधनार तथा बंधावनार बन्नेने आपसमा यदि क्लेशादि उद्भवे तो सज्जनो कदापि पण प्रशंसा न करे. " स्पष्टीकरण"
मंदिर अने जिनबिंबरूप कार्य प्रकरणमा कर्ता तथा करावनार बन्नेना चित्तनो भंग न थाय ए ज संयोग मलवो प्रशंसनीय गण्यो छे. हेतु ए के-आवा सुंदर संयोग खरेखर विशिष्ट अने उत्तम मंदिर तथा जिनबिंबरूप कार्यना फलने अी शके छे, तेमज यदि भावा कार्योमा माहोमांहे कारीगर तथा प्रेरकना चित्तो नाराज थाय, क्लेशमय बने तो सानो पा कार्यनी प्रशंसा न करता केवल निंदा करे