Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
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नरविक्रमचरित्रे ।
नरसिंहनृपस्य वैभवम् ।।
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तरलया विमलमणिमुत्ताहारे न विसिडलोयववहारे तणुत्तमुदरस्सन सरस्स कुडिलत्तं केसफलावस्स न सपणयालावस्म । अवि यनियरूवविजियसुरबहुजोवणगवाए कुवलयच्छीए । उम्भडसिंगारमहासमुद्दद्धरिसवेलाए ॥१॥
को तीए भणियविन्भमनेवत्थच्छेययागुणसमूहं । वण्णे उ तरह तूरंतोऽवि जीहासएणपि ? ॥ २ ॥ तथा-नियचक्कसंधिरक्खणवियक्खणो पयइपालणाभिरओ । अनोऽनबद्धपणओ दूरं संतोसमारो य ॥ ३ ॥
सुप्पणिहियपणिहियओ पमुणियरिउचक गुविलवावारो । पहुभत्तो गुणरागी निब्बूढभरो महारंभो ॥ ४ ॥
एकेकपहाणगुणो मंतिजणो बुद्धिसारपमुहो से । अत्थी समस्यनयसत्थ(नि)समणवित्थरियमइपसरो ॥५॥ तरलता विमलमणिमुक्ताहारे न विशिष्टलोकव्यवहारे, तनुत्वमुदरस्य न स्वरस्य, कुटिलत्वं केशकलापस्य न सप्रणयालापस्य । अपि चनिजरूपविजितसुरवधूगौवनगर्वायाः कुवलयाक्ष्याः । उद्भटशृङ्गारमहासमुद्रदुर्धर्षवेलायाः
॥१॥ कस्तस्या भणितविभ्रमनेपध्यच्छे कतागुगसमूहम् । वर्णयितुं शक्नोति स्वरमाणोऽपि जिवाशतेनापि ॥२॥ तथा-निजचक्रसन्धिरक्षणविचक्षणः प्रकृतिपालनाभिरतः । अन्योऽन्यबद्धप्रणयो दूरं सन्तोषसारश्च
सप्रणिहितप्रणिहितकः प्रज्ञातरिपुचक[गुप्त गपिलव्यापारः । प्रभुभक्तो गुणरागी निम्यूँ दमरो महारम्भः ॥ ४ ॥ एकैकप्रधानगुणो मन्त्रिजनो बुद्धिमारप्रमुखस्तस्य । अस्ति समस्तनयशास्त्र[ नि ]श्रवणविस्तरितमतिप्रसरः ॥ ५॥
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