Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री नरविक्रमचरित्रे | ॥ ३१ ॥ www.kobatirth.org तडियकपडिय दीणाणाहाणिस्त्रियविदेसियजणाण महादाणाई कारावियाई उत्तुंगसिंगसुंदराई देवमंदिराहं निरूवियाई अवारियसत्ताई, कालकमेण य विगओ मम सोगो, वसीकयं सामंतचकं, निव्वासिया नियमंडलविलुपगा पर्यट्टिओ पुढपुरिसमग्गो । अन्नया य सिसिंधुरखंधगओ विलयाजणधुवमाणसियचमरो । धरियधवलायवत्तो किंकरनरनियरपरियरिओ ।। १ ।। उम्मग्गपयहुद्दामतुरयबहुक्खउद्धयरओहो । नयराओ निम्गओहं वणलच्छीपेच्छणङ्काए ॥ २ ॥ जाय तत्थ पेच्छामि पुप्फफलसमिद्धबंधुरं वरुणतरुगणं परिष्ममामि माहवीलयाहरेसु अवलोएमि कयलीदलाणं रुदत्तणं निरिक्खामि संपिंडियस सिखंडपंडरं केयइपत्तसंचयं अग्वाएमि अणग्धवउलमालिया सुरहिपरिमलं करेमि करतलेण टिकापटिक दीनानाथा निश्रित वैदेशिक जनेभ्यः महादानानि, कारितानि उतुङ्गशृङ्गसुन्दराणि देवमन्दिराणि निरूपितान्यवारितसत्त्वानि, कालक्रमेण च विगतो मम शोकः, वशीकृतं सामन्तचक्रं, निर्वासिता निजमण्डलविलुम्पकाः, प्रवर्तितः पूर्वपुरुषमार्गः । अन्यदा च सितसिन्धुरस्कन्धगतो वनिताजनधूयमान सितचामरः । धृतधवलातपत्रः किङ्करनरनिकरपरिकरितः उन्मार्गप्रवृत्तोदामतुरगघटोत्क्षतोद्धृतरजओघः । नगरान्निर्गतोऽहं वनलक्ष्मीप्रेक्षणार्थम् ॥ For Private and Personal Use Only १ ॥ ॥ २ ॥ यावच्च तत्र प्रेक्षे पुष्पफलसमृद्धबन्धुरं तरुणतरुगणं, परिभ्रमामि माधवीलतागृहेषु, अवलोकयामि कदलीदलानां रुन्दत्वं निरीक्षे संपिण्डितशशिखण्डपाण्डुरं केतकी पत्र सखयं, जिनामि अनर्घ्य बहुलमालिकासुरभिपरिमलं, करोमि करतलेन सौरभभर लोभ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीरसेनराज्याप्ति वनलक्ष्मी प्रेक्षणश्च ।। ॥ ३१ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150