Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
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नरविक्रमचरित्रे ।
मल्लविद्यादि प्राप्तिः॥
RESEA
अकालक्खेवेण य बुद्धिपगरिसेण जाओ एसो कलासु कुसलो, कहं चिय -
पत्तट्ठो धणुवेए कुमलो नीसेसमल्लविजासु | कयकिच्चो करणेसुं विचित्तचित्तेसु निउणमई ॥१॥ परभावलक्षणम्मी वियक्खणो जाणो समयसत्थे। पत्तच्छेये छेओ निम्माओ सहमग्गेसु ॥२॥ निउणो मंतवियारे तंतपओगेसु कुसलबुद्धी य । पुरिसकरितुस्यनारीगिहलक्खणबोहनिउणो य ।। ३ ।। आउजनदृज्यप्पओगबहुभयगेयचउरो य । किं बहुणा ?, सबथवि गुरुत्व सो पगरिसं पत्तो ॥ ४ ॥
एवं च गहियकलाकलावं कुमरं घेत्तण गओ कलायरिओ नरवइसमीवं, अन्भुदिओ परमायरेण नरवहणा. दवावियासणो उबविट्ठो पुट्ठो य-किमागमणकारणति, कलायरिएण भणियं-देव ! एस तुम्ह कुमारी गाहिओ नीसेसकलाओ सुरगुरुव पत्तो अकालक्षेपेण च बुद्धिप्रकर्षेण जात एष कलासु कुशलः, कथमेव - प्राप्तार्थों धनुदे कुशलो निःशेषमल्लविद्यासु । कृतकृत्यः करणेषु विचित्रचित्रेषु निपुणमतिः
॥१॥ परभावलक्षणे विचक्षणो ज्ञातकः समयशास्त्रे । पत्रच्छेदे छेको निर्मात: शब्दमार्गेषु
॥२॥ निपुणो मन्त्रविचारे तन्त्रप्रयोगेषु कुशलबुद्धिश्च । पुरुषकरितुरगनारीगृहलक्षणबोधनिपुणश्च
॥ ३ ॥ आतोद्यनृत्यद्यूतप्रयोगबहुभेदगेयचतुरश्च । किं बहुना सर्वत्रापि गुरुरिव स प्रकर्ष प्राप्तः
एवं च गृहीतकलाकलापं कुमारं गृहीत्वा गतः कलाचार्यों नरपतिसमीपम् , अभ्युत्थितः परमादरेण नरपतिना, दापितासन, उपविष्टः पृष्टश्च-किमागमनकारणमिति, कलाचार्येण भणितम्-देव ! एष युष्माकं कुमारी माहितो निःशेषकलाः सुरगुरुरिव प्राप्तः
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