Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
महोत्सव
नरविक्रमचरित्रे ।
॥६८॥
MAHAGRAMMARCLASS
| वियरह अणिवारियपसरं कणयदाणं मुयह चारगाहिंतो जणंति वुत्ते जं देवो आणवेइत्ति भणिऊण पुरीए पारद्धं तेहिं वद्धावणयं । कह चिय?,-पंचप्पयारवनयविरइयसुपसत्थसत्थियसमृहं । विक्खित्तक्खयदोवापवालसोहंतमहिवीदं ॥१॥
रहसपणञ्चिरतरुणिगणवच्छत्थलतुट्टहारसिरिनियरं । अन्नोन्नावहरियपुण्णपत्तवटुंतहलबोल ॥ २॥ पडिभवणदारविरइयवंदणमालासहस्सरमणिजं । कमलपिहाणामलपुत्रकलसरेहंतगेहमुहं ॥ ३ ॥ वजंताउजसमुच्छलंतघणघोरघोसभरियदिसं। चिन्ताइरित्तदिजंतदविणसंतोसियस्थिगणं ॥ ४ ॥ पमुइयनीसेसजणं कुलथेरीकीरमाणमंगल्लं । इय नरवडकयतोसं बद्धावणयं कयं तस्थ ॥ ५ ॥
वितरताऽनिवारितप्रसरं कनकदानं, मुशत चारकेभ्यो जनमिति उक्त यदू देव आज्ञापयतीति भणित्वा पुर्या प्रारब्धं तैर्वर्धनकम् (वर्धापनकम्)। कथमेव ? पश्चप्रकारवर्णकविरचितसुप्रशस्तस्वस्तिकसमूहम् । विक्षिप्ताक्षतर्वाप्रवालशोभमानमहीपीठम्
रभसप्रनृत्यत्तरुणीगणवक्षःस्थलटितहारश्रीनिकरम् । अन्योऽन्यापहृतपूर्णपात्रवर्तमानकोलाहलम् ॥२॥ प्रतिभवनद्वारविरचितवन्दनमालासहस्ररमणीयम् । कमलपिधानामलपूर्णकलशराजद्रोहमुखम् वाद्यमानातोद्यसमुच्छलद्धनघोरघोषभरितदिशम् । चिन्तातिरिक्तदीयमानद्रविणसन्तोषितार्थिगणम् ॥४॥ प्रमुदितनिःशेषजनं कुलस्थविराक्रियमाणमाङ्गल्यम् । इति नरपतिकततोष वर्धनकम् (वर्धापनक) कृतं तत्र ॥ ५॥
HMMeCCCCCCE%AC%
॥ ६८॥
E
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150