Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie
नरविक्रमचरित्रे ।
धोरशिवम्य का जाल. |स्फोटः ।।
नरवइथोभकरणदकखाई मंतकखराई पुत्बपवित्तविहिणा समुच्चरितो निसुणिओ रना, परिभावियं चऽणण-अहो एस दुटुंतवस्सी मं थोभविहिणा विचलं काऊण मन्निहितनिहितकत्तियाए परिकुवियकयंतभमुहकोणकुडिलाए विणासि ऊण हुयवहं तपिउं बंछति, पहाणनरोवहारविहिणा हि सिझंति दुटुदेवयाओ, ता किमेस्थ जुत्तं ?, अवि य
एतस्म कि इयाणिं वावडचित्तस्म तिक्खखग्गेण । कदलीदलं व सीसं लुणामि पासंडिचंडस्स ।।१।। अहवा दुदररिउगंधसिंधुगधायदंतुरग्गेण । खग्गेण मज्झ लजिजईह घायं करतेण ।। २ ॥
केवलमवेहणिजो नयेम एयमि होह पत्थावे । जं थोभकरणविहिणा मरणं मह वंछई काउं ॥ ३॥ | तथापि-झाणावरोहबक्खित्तचित्तपसमि हणिउकामस्म । सग्गं गयावि गुरुगो होहिंति परंमुहा मज्झ ।। ४ ।।
नरपतिस्तम्भकरण रक्षाणि मन्त्राक्षराणि पूर्वप्रप्रतविधिना समुच्चरन् निश्रतो रामा, परिभावितं चानेन-अहो । एष दुष्टतपस्वी मां स्तम्भविधिना विचलं कृत्वा सन्निहितनिहित कर्बिकया परिकुपितकृतान्तभ्रकोणकुटिलया विनाश्य हुतवहं तर्पितुं वाञ्छति, प्रधाननरोपहारविधिना हि सिद्धयन्ति दुष्टदेवताः, ततः किमत्र युक्तम ? अपि च
एतस्य किमिदानी व्यापृतचित्तस्य तीक्ष्मखङ्गेन । कदलीदलनिव शीर्ष लुनामि पापण्डिचण्डस्य अथवा दुधर रिपुगन्धसिन्धुराघातदन्तुगग्रेण । खड्रेन मम लज्यते इह घातं कुर्वता केवलमुपेक्षणीयो न चेष एतस्मिन् भवति प्रस्तावे | यत् स्तम्भकरणविधिना मरणं मम वाञ्छति कर्तुम् ॥३॥ तथापि-ध्यानावरोधव्याक्षिप्तचित्तप्रसरे हन्तुकामस्य । स्वर्ग गता अपि गुरबो भविष्यन्ति पराङ्मुखा मम ।।४।।
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150