Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्री । नरविक्रमचरित्रे ।।
खेचरेण भणितं निजचरित्रम् ॥
RKAROCHURCEDEOS
भृयपुत्वमवि पाति विसमं दसाविवागं, सबहा असरिसमिमं जेण न कयाई रंभाथंभो सहइ मत्तमायंगगंडयलकंडूवुच्छेयं, (न रेहइ जुञ्जमाणो मुणालतंतू) पासंमि, को पुण साहेसु एत्थ वइयरो, खयरेण भणियं-किमेत्थ कहियो ?, पचक्खमेव दिट्ठ महाणुभागेणं, मए भणियं-सम्मं निवेएसु, खयरेण भणियं-जइ कोऊहलं ता निसामेसु
कलहोयकूलकोडीविराइओ स्यणकोडिविच्छुरिओ । वेयड्डगिरी तुमएवि निसुणिओ भरहखेतमि ॥१॥ सुरसिद्धजक्खरक्खसकिनरकिंपुरिममिहुणरमणिजो । सुरहिवरकुसुमतरुसंडमंडिउद्दामदिसिनिवहो ॥ २ ॥ विजाहररमणीजणरमणीयं विजियसवपुरसोई । तत्थथि गयणवल्लभनयरं नामेण सुपसिद्धं ॥३॥ तत्थ य राया निवसह समग्गविजासहस्सबलकलिओ। पणमंतखयरमणिमउडकिरीडटिविडिकियग्गकमो ॥४॥
भूतपूर्वमपि प्राप्नुवन्ति विषमं दशाविपाकं, सर्वथाऽसदृशमिदं येन न कदाचिद् रम्भास्तम्भः सहते मत्तमातङ्गगण्डस्थलकण्डूव्युच्छेदं [न राजते युध्यमानो मृणालतन्तुः ] पार्श्वे कः पुनः कथयात्र व्यतिकरः ? खचरेण भणितम्-किमत्र कथयितव्यम् ? प्रत्यक्षमेव दृष्टं महानुभागेन, मया भणितम्-सम्यग् निवेदय खचरेण भणितं-यदि कुतूहलं तर्हि निशमय
कलधौतकुलकोटिविराजितो रत्नकोटिविच्छुरितः । वैतादयगिरिस्त्वयाऽपि निश्रुतो भरतक्षेत्रे सुरसिद्धयक्षराक्षसकिन्नर किंपुरुषमिथुनरमणीयः । सुरभिवरकुसुमतरुपण्डमण्डितोद्दामदिग्निवहः
॥२॥ विद्याधररमणीजनरमणीयं विजितसर्वपुरशोभम् । तत्रास्ति गगनवल्लभनगरं नाम्ना सुप्रसिद्धम् तत्र च राजा निवसति समविद्यासहस्रबलकलितः । प्रणमत्खचरमणिमुकुटकिरीटमण्डितापक्रमः
KALIARRHAA%
9CRE
॥३७॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150