Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri

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Page 97
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie श्री नरविक्रम-2 चरित्रे । मदावस्थजयकुञ्जरोपद्रवः ।। CHOCAC 9 ॥८९॥ C पाडियसुरभवणसिहरम्गो अहकढिणकरप्फालणविहाडि उद्दामतुंगपागारो अइवेगुच्चालियकन्नतालविद्दवियमसलउलो अइरभसभरपहावणसपक्खकुलसेल चल्लिकयसको दढदंतदंडताडणढलढलियट्टालयसमूहो करघायदंतवेहणचरणुप्पीडणनिवाडियजणोहो सम्वत्थ भमइ भीमो जमोव्व जुगविगमसमयंमि, अह मंदरमहिजमाणमहोयहिघोसघोरे समुच्छलिए तियचउक्चच्चरेसु जणाणं अकंदियरवे पुच्छियं नरवडणा-भो भो किमेवं नयरे कोलाहलो सुम्मइत्ति ?, जणेण भणियं-देव! एस तुम्ह जयकुंजरो भग्गालाणखंभो नयरं विद्दवेइ, एवं सोचा विसजिया कुमारपमुहा पहाणलोया जयकुंजरगहणनिमित्तं, भणिया य-अरे ! सव्वहा सत्थघायं परिहरंतेहिं एयरस वट्टियव्यं, एवं च पडिवञ्जिय गया ते तदभिमुह, न य पेच्छंति कमवि उवार्य जेण हत्थी वसमुवगच्छइत्ति, एत्थंतरे वेलामासवत्तिणी गुरुगब्भभारवसविसंठुलनिवडंतचरणा गाढपाणभय कंपंतसरीरजट्ठी इओ दनपाटितसुरभवनशिखरामोऽतिकठिनकरस्फालनविघाटितोहामतुङ्गप्राकारोऽति वेगोच्चालितकर्णतालविद्रवितभ्रमरकुलोऽतिरभसभरप्रधावनसपक्षकुलशैलचलनकृतशङ्को दृढदन्तदण्डताडनढलढलिता पातिता]टालकसमूहः करधातदन्तवेधनचरणोत्पीडननिपातितजनौघः सर्वत्र भ्रमति भीमो यम इव युगविगमसमये, अथ मन्दरमध्यमानमहोदधिघोषघोरे समुच्छलिते त्रिकचतुष्कचत्वरेषु जनानामाक्रन्दितरवे पृष्टं नरपतिना-भो भो ! किमेवं नगरे कोलाहलः श्रूयत इति, जनेन भणितं देव ! एष युष्माकं जयकुञ्जरो भग्नालानस्तम्भो नगरं विद्रावयति, एवं श्रुत्वा विसर्जिताः कुमारप्रमुखाः प्रधानलोका जयकुञ्जरग्रहणनिमित्तं, भणिताश्च-अरे ! सर्वथा शस्त्रघातं परिहरद्भिरेतस्य वर्तितव्यम् , एवं च प्रतिपद्य गतास्ते तदभिमुखं, न च प्रेक्षन्ते कमप्युपायं येन हस्ती वशमुपगच्छतीति, अत्रान्तरे वेलामासवर्तिनी गुरुगर्भभारवशविसंस्थुलनिपतच्चरणा गाढप्राणभयकम्पमानशरीरयष्टिरित % % % %** % % का८९॥ For Private and Personal Use Only

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