Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri

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Page 71
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RBALA कमालाया: स्वमकृयनार्थमागमनम् ।। श्री ता उररवाणुमग्गलग्गचक्कंगखलियचंकमणा अणायरसट्ठाणणिउत्तलट्ठकंचीकलावप्पमुहाभरणा सहरिसपधावियखुजिवामणिपूलिंदिनरविक्रम- पमोक्खचेडीयाचकवालपरिवुडा पविट्ठा चंपयमाला देवी, दिट्ठो राया निद्दावसनिस्सहसेन्जाविमुकसवंगोवंगो, भणियं चsचरित्र हाणाए-परिणीयपुत्तिओ इव हयसत्तू इव विदत्तदविणोत्व परिपढियसबसत्थोच निम्मयं सुयइ नरनाहो, अह खणतरे पवजियाई पाभाइयमंगलतूराई पयडीहूयाई दिसिमुहाई, पढिय मागहेणलंघेउं विसमंपि दोसजलहिं गंजित्तु दोसायरं, गोतं पायडिउं सवीरियवसा चंक्रमिउं भीसणे । आसाअंगसमुन्भवेण महसा सारेण संपूरिउ, सरो देव ! तुम पिवोदयसिरिं पावेह सोहावहं ।। १॥ एवं च निसामित्ता पवुद्धो राया, चिंतिउमाढतो य-अहो सारस्सयंपिव वयणं जहावित्तवत्थुगन्भं कहं पढियं मागहेण ?, रवानुमार्गलनचक्राङ्गस्खलितचङ्कमणा अनादरस्वस्थाननियुक्तलष्ठकाश्चीकलापप्रमुखाभरणा सहर्षप्रधावितकुब्जावामनापुलिन्द्रीप्रमुखचेटिकाचक्रवालपरिवृता प्रविष्टा चम्पकमाला देवी, दृष्टो राजा निद्रावशनिस्सहाय्याविमुक्तसर्वाङ्गोपाङ्गः, भणितं चानया-परिणीतपुत्रिक इव हतशत्रुरिव अर्जितद्रविण इव परिपठितसर्वशास्त्र इव निर्भयं स्वपिति नरनाथः, अथ क्षणान्तरे प्रवादितानि प्राभातिकमङ्गलतूर्याणि प्रकटीभूतानि दिमुखानि, पठितं मागधेन लायित्वा विषममपि दोषजलधि गजित्वा दोषाकरम्, गौत्रं प्रकटय्य स्ववीर्यवशात् चट्टमित्वा भीषणे ॥ आशाअङ्गसमुद्भवेन महसा सारेण संपूरयितुम् , सूर्यो[ रो]देव ! त्वमिवोदयश्रियं प्राप्नोति शोभावहम् ॥१॥ एवं च निशम्य प्रबुद्धो राजा, चिन्तयितुमारब्धश्व-अहो सारस्वतमिव वचनं यथावृत्तवस्तुगर्भ कथं पठितं मागधेन ? एवमेव SACARBOASARKAR ॥६३॥ For Private and Personal Use Only

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