Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri

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Page 72
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % स्वम % श्री नरविक्रमचरित्रे । 4 वृत्तम् ।। KACIENCREACHE एवमेव पुणो पुणो परिभावेमाणो उडिओ सयणाओ, अवलोइया य हरिसवसवियसंतनयणसहस्सपत्ता देवी चंपयमाला, पुट्ठा य सा आगमणपओयणं, भणियं च तीए-देव ! अज पच्छिमद्धजामे सेसरयणीए सुहपसुत्ताए सुमिणयंमि सहसच्चिय वयणमि पविसमाणो मए अनणुप्पमाणो मणिरयणमालालंकिओ पवणसमुद्धयंचलाभिरामो फलिहमयडिंडिरपंडुरडंडोवसोहिओ महज्झओ दिट्ठो, एवंविहं च अदिट्ठपुवं सुमिणं पासिऊण पडिबुद्धा समाणी समागया तुम्ह पासंसि सुमिणसुभासुभफलजाणणत्थं, ता साहिउमरिहइ देवो एयस्स फलंति, रमा मणिय-देवि ! विसिट्ठो तए सुमिणो दिट्ठो, ता निच्छियं होही तुह चउसमुद्दमेहलावलयमहिमहिलापहस्स कुलके उस्स पुत्तस्स लाभो, जं तुम्मे वयह अवितहमेयंति पडिवन्जिय निबद्धा देवीए उत्तरीयंमि निद्रुरा सउणगंठी, खणंतरं च मिहोकहाहि विगमिय गया देवी निययभवणं, रायावि कयपाभाइयकायचो निसपुनः पुनः परिभावयन् उत्थितः शयनात् , अवलोकिता च हर्षवशविकसन्नयनसहस्रपत्रा देवी चम्पकमाला पृष्टा च साऽऽगमनप्रयोजन, भणितं च तया-देव ! अद्य पश्चिमाधयामे शेषरजन्यां सुखप्रसुप्तया स्वप्ने सहसैव वदने प्रविशन् मया अनणुप्रमाणो मणिरत्नमालाऽलङ्कतः पवनसमुध्धूताञ्चलाभिरामः स्फटिकमयडिण्डिरपाण्डुरदंडोपशोभितो महाध्वजो दृष्टः, एवविधं चादृष्टपूर्व स्वप्नं दृष्ट्वा प्रतिबुद्धा सती समागता तव पावे स्वपशुभाशुभफलज्ञानार्थ, तस्मात्कथयितुमर्हति देव एतस्य फलमिति, राज्ञा भणितं-देवि ! विशिष्टस्त्वया स्वप्नो दृष्टः, तस्मानिश्चितं भविष्यति तव चतु:समुद्रमेखलावलयमहीमहिलापतेः कुलकेतोः पुत्रस्य लाभः, यद् यूयं वदय अवितथमेतदिति प्रतिपद्य निबद्धा देव्या उत्तरीये निष्ठुरा शकुनप्रन्थिा, क्षणान्तरं च मिथः कथाभिर्विगम्य गता देवी निजभवन, राजाऽपि कृतप्राभातिककर्तव्यो निषण्ण: SAROKAURAHAKAKAARE ॥६४॥ For Private and Personal Use Only

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