Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
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नरविक्रमचरित्रे।
मन्त्रिणा
सह विचारणा।
OctitioCE
कयपाभाडयकिच्चो अंगरक्खपीठमप्पाहपहाणपरियणाणुगओ अत्यागीमंडवे मंतण राया अणेगमणि किरण विच्छरियमि सूरोव पुत्वपवयसिहरमि कणयसिहासणं मि निविट्ठो, तयणंतरं च ठियाओ उभयपासेसु चामरग्गाहिणीओ निविट्ठा य नियनियट्ठाणे मंतिसामंतसुहडखंडरक्खपामोक्खा पहाणपुरिसा पडिच्छियाई पञ्चतरायपेसियमहरिहपाहुडाई चिंतियाई रजकजाई, खणंतरे य पेसियनीसेससामतपभिइजगो कइवयपहाण जणपरियरिओ एगंतडिओ रयणिवइयर बुद्धिसारपमुहाण मंतीणं संसिऊण पुच्छिउमेवं समारो-भो मंतिणो! सुणह तुम्मे समयसस्थाई, बुझह तंतमंतपडलाइं, पज्जुवासह विजासिद्धे, सयपि सहोवहासुद्धबुद्धिणो विवेयह गुविलंपि कजजाय, ता साहह कहमिमस्स सुयलामचिंतासायरस पारं वच्चिस्सामोत्ति ? खणंतरं च चिंतिय जुत्ताजुत्तं भणियं मंतिवग्गेण-देव! सुटु सहाणे समुजमो, अम्हे पुरावि देवस्स एयमद्वं विनविउकामा
कृतप्राभातिककृत्योऽङ्गरक्षकपीठमर्दप्रमुखप्रधानपरिजनानुगत आस्थानीमण्डपे गत्वा राजाऽनेकमणि किरणविच्छुरिते सूर्य इव पूर्वपर्वत8| शिखरे कनकसिंहासने निविष्टः, तदनन्तरं च स्थिता उभयपार्वेषु चामरग्राहिण्यः, निविष्टाश्च निजनिजस्थाने मन्त्रिसामन्तसुभट खण्ड
रक्षकप्रमुख्याः प्रधानपुरुषाः, प्रतीसितानि प्रत्यन्तराजप्रेषितमहाईप्राभूतानि, चिन्तितानि राज्यकार्याणि, क्षणान्तरे च प्रेषितनिश्शेष. सामन्तप्रभृतिजनः कतिपयप्रधानजनपरिकरित एकान्तस्थितो रजनीव्यतिकरं बुद्धिसारप्रमुखाणां मन्त्रिणां शंसित्वा प्रष्टुमेवं समा. रब्धः-भो मन्त्रिणः ! शणुत यूयं समयशास्त्राणि, बुध्यध्वं तन्त्रमन्त्रपटलानि, पर्युपाचं विद्यासिद्धान् , स्वयमपि सर्वोपधाशुद्धबुद्धयो विवेदयत गुपिलमपि कार्यजातम् , तस्मात् कथयत कथमस्य सुतलाभचिन्तासागरस्य पार ब्रजिष्याम इति ? क्षणान्तरं च चिन्तयित्वा युक्तायुक्तं भणितं मन्त्रिवर्गेग-देव ! सुष्टु सत्स्थाने समुद्यमः, वयं पुराऽपि देवायतमय विज्ञपयितुकामा
ACTREKHA
||॥ ११ ॥
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