Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri

View full book text
Previous | Next

Page 70
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नरविक्रमचरित्रे । जयशेखर नगरं प्रति घोर शिवगमनम् ॥ ॥ ६२ ॥ SARALASAHEGAOACHES प्पमाणनयणंसुधाराधोयवयमो घोरसिवो गाढमालिंगिय नरवई समायगिरं भणिउमाढत्तो कुब्भमतिमिरुन्भामियलोयणपसरेण तुज्झ अवरद्धं । जं किंपि पावमहणा तमियाणि खमसु मम सर्व ॥१॥ सीसो इव दासो इव रिणिओ इव किंकरो इव तुहाहं । ता साहसु किं करणीयमुचरं राय नरसिंह! ॥२॥ रना भणियं जइया नियरजसिरि समम्गमणुहबसि । मम संतोसनिमित्तं तइया साहिजसु सवत्तं ॥३॥ एवं काहंति पयंपिऊण विजाहरेहिं परियरिओ। दिबविमाणारूढो सो झत्ति गओ जहाभिमयं ॥ ४ ॥ रायावि पत्ततिहुयणरायसिरिवित्थर पिव सयलसुकयसंचयपत्तोवचयंपिव समत्थपसत्थतिस्थदसणपूयं पिव अप्पाणं मन्नतो पाणिपइट्ठियखग्गरयणो गओ नियभवणं, निसण्णो सेजाए सुत्तो स्वर्णतरं समागा निदा, निसावसाणे य रणझणंतमणिनेधाराधौतवदनो घोरशिवो गाढमालिङ्गय नरपतिं सगद्गदगिरं भणितुमारब्धः कुममतिमिरोद्भामितलोचनप्रसरेण तवापराद्धम् । यत्किमपि पापमतिना तदिदानी क्षमस्व मम सर्वम् ॥१॥ शिष्य इव दास इव ऋणित इव किङ्कर इव तवाहम् । ततः कथय किं करणीयमुत्तरं राजन् ! नरसिंह ! ॥२॥ राशा भणितं यदा निजराज्यश्रियं समग्रमनुभविष्यसि । मम संतोषनिमित्तं तदा कथय स्ववृत्तम् एवं करिष्यामीति प्रजल्प्य विद्याधरैः परिकरितः। दिव्यविमानारूढः स झगिति गतो यथाऽभिमतम् ॥४॥ राजाऽपि प्राप्तत्रिभुवनराज्यश्रीविस्तारमिव सकलसुकृतसंचयप्राप्तोपचयमिव समस्तप्रशस्ततीर्थदर्शनपूतमिव आत्मानं मन्यमानः पाणिप्रतिष्ठितखङ्गरत्नो गतो निजभवन, निषण्णः शय्यायां सुप्तः क्षणान्तरं समागता निद्रा, निशाऽवसाने च रणनन्मणिनूपुर SC4%ARCHk VI॥ ६२॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150