Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
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श्री नरविक्रमचरित्रे |
॥ ३० ॥
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कलाकलावं, अन्नया य उचिओत्ति परिचितिय ठाविओऽहं ताए जुवरायपए, दिना य मज्झ लाडचोड मरहट्ट सोडमुहा देसा कुमारतीए, परिपालेमि जुवरायत्तणं, ममपि अणुमग्गमणुसरह सुहडाडोत्रसंकुडा पगलंतगंडस्थला दप्पूदुरसिंधुरवडा, ममावि मग्गओ धावंत तरलतरतुरंगपहकरा, मज्झपि परसुसेलचंड गंडी व सर विसर कुंतगयापहरणहत्याई वित्थरंति चउद्दिसिंबि पुरिसबलाइंति, दुइसवि मज्झ सवत्तभाणो दिनाई ताएण कवयगामसयाई, एवं च विसयहमणुवंताणं वच्चति वासरा । अण्णा विपरिणामधम्मयाए जीवलोयविलसियाणं पइसमयविणामसीलयाए आउयकम्मदलियाणं अप्पडिहयसासणतणओ जममहारास्स सुरिंदचावचवलयाए पिय जनसंपओवस्त पाविओ अवंति सेणराया पंचतंति, कयंमि य तम्मयकिच्चे मंतिसामंतसरीररक्वप्पा मोक्ख पहाण लोएण निवेसिओऽहं रायपए, पट्टियाई मए तायस्स सग्गगयस्स करण
कलाकलापम्, अन्यदा च उचित इति परिचिन्त्य स्थापितोऽहं तातेन युवराजपदे, दत्ताश्च मह्यं लाटवौडमहाराष्ट्र सौराष्ट्रप्रमुखा देशाः कुमारमुक्त्यै, परिपालयामि युवराजत्वं ममापि अनुमार्गमनुसरति सुभटाटोपसकुला प्रगलगण्डस्थला दर्पोच्छु र सिन्धुरघटा, ममापि पृष्ठतो धावन्ति तरलतरतुरङ्गपकराः, ममापि परशुसेलचण्डगाण्डीवश र विसर कुन्तगदाप्रहणहस्तानि विस्तरन्ति चतुर्द पुरुपवलानीति, द्वितीयस्यापि मम सपत्नभ्रात्रे दत्ता तातेन कतिपयग्रामशतानि एवं च विषयसुखमनुभवतो त्रजन्ति वासराः ।
अन्यदा क्षणविपरिणामधर्मत्वेन जीवलोकविलसितानां प्रतिसमयविनाशशीलत्वेन आयुः कर्म दलिकानामप्रतिहतशासनत्वाद् यमराजस्य, सुरेन्द्रचापचपलत्वेन प्रियजन सम्प्रयोगसमुद्भव सुखस्य प्राप्तोऽवन्ति सेनराजः पञ्चत्वमिति, कृते च तन्मृतकृत्ये मन्त्रिसामन्तशरीररक्षप्रमुखप्रधानलोकेन निवेशितोऽहं राजपदे, प्रवर्तितानि मया तातस्य स्वर्गङ्गतस्य कृतेन
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वीरसेन
युवराज
पदारोपगं
नृपस्य
परलोकगमनश्च ॥
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