Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री नरविक्रमचरित्रे | || 88 || www.kobatirth.org वणवण संपयं धिट्टयाए अयाणमाणो हव के तुम्भे केण पेसिया किं वा आगमणकअंति पुच्छसि, जइ पुण विसेसकहोण तूससि ता निसामेहि, अम्हे विजाहरा रहनेउरचकवालपुरविजाहरनरिंदसिरिसमरसिंघनंदणेण वेरिखयरा संमप्पणपरूढगाढकोवानलेन सिरिअमरतेयकुमरेण तुह दुद्विणयतरुफलदंसणत्थं पेसियत्ति, मए भणियं-जड़ एवं ता जहाइङ्कं उवचिहत्ति, तओ अक्खयसरीरं चैव मं गहिऊण उप्पइया ते गयणमग्गेण, गया य दुरदेसं, मुको य अहं एगत्थ भुयंगभीमे गिरिनिगुंजे, भणियं च मए- किं रे ! एवं मुंह ? जं नेव पहरह, तेहिं भणियं - एत्तिया चेत्र पहुणो आणा, पहुचित्ताणुवत्तणं हि सेवगस्स धम्म, एवं भणिय उपया ते तओ ठाणाओ । अहंपि कोइलकुलगवलगुलियसामलासु सयलदिसासु केसरिकिसोरनिदय निदारिय सारंगपमुक्कविरसारावभीसणेसु काणणेसु वणमहिसावगाहिअंत पल्ललसमुच्छलंतपंक पडलदुग्गेसु मग्गेसु तरुवरसाहा हरिसवसनि वचनमवगणय्य साम्प्रतं धृष्टतया अजानान इव के यूयं केन प्रेषिताः किंवाऽऽगमनकार्यमिति पृच्छसि यदि पुनर्विशेषकथनेन तुष्यसि तदा निशमय-वयं विद्याधरा रथनूपुरचक्रवालपुर विद्याधरनरेन्द्र श्रीसमरसिंहनन्दनेन वैरिखेचरासमर्पणप्ररूढगाढकोपानलेन श्री अमरतेजकुमारेण तव दुर्विनयतरुफलदर्शनार्थं प्रेषिता इति मया भणितं यद्येवं तदा यदादिष्टमुपतिष्ठत इति, ततोऽक्षतशरीरमेव मां गृहीत्वोत्पतितास्ते गगन मार्गेण, गताश्च दूरदेशं, मुक्तश्चाहमेकत्र भुजङ्गभीमे गिरिनिकुञ्जे, भणितं च मया किं रे एवं मुचत ? यन्नैव प्रहरत, तैर्भणितम् एतावत्येव प्रभोराज्ञा, प्रभुचित्तानुवर्तनं हि सेवकस्य धर्मः, एवं भणित्वा उत्पतितास्ते ततः स्थानात् ! अहमपि कोकिलकुलगवल गुलितश्यामलासु सकलदिक्षु केसरिकिशोर निर्दयनिर्धारित सारङ्गप्रमुक्तविरसाऽऽराव भीषणेषु काननेषु वनमहिषावगाह्यमान पल्वलसमुच्छत्पङ्कपटल दुर्गेषु मार्गेषु तरुवरशाखासंघर्ष शनि For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीरसेन स्यारण्ये विमो - चनम् ॥ ॥ ४४ ॥

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