Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
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नरविक्रमचरित्रे ।
घोरशिवस्य हुताशनप्रवेशोद्यमः॥
॥२७॥
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घोरसिवेण भणियं-महाभाग! मा एवमुल्लवेसु, जीवसु तुम मजीविएणावि जाव जलहिकुलसेलससितारयदिवायरे, पसीयसु मे, वियरसु एकं पसायंति, राइणा भणियं-किमेवं वाहरसि ?, जीवियदाणाओऽवि किमवरमदेयं ! ता असंभंतो पत्थेसु, घोरसिवेण भणियं-जह एवं ता अणुजाणसु मम एयंमि पजलंतजालासहस्सकवलियसलभकुलसंकुले मिसिमिसंतद्धदद्धकलेवरुच्छलंतविस्सगंधुद्धरे मसाणहुयासणे पवेसुञ्जमं, हवसु धम्मबंधवो, नन्नहा मे पुत्रविहियमहापावपवयकंतस्स अबस्सं विस्सामो भविस्सइत्ति, रण्णा भणियं-कुओ तुह पुवं पावसंभवो ?, जओ कयाई तुमए विविहाई तबच्चरणाई आपूरियाई पावभक्खणदक्खाई मंतज्झाणाई पूइयाई देवकमकमलाई निवत्तियाई वेयरहस्सज्झयणाई उवासिओ गुरुजणो पवटिया धम्ममग्गेसु पाणिणो, ता न सबहा वोनुमवि जुत्तमेयं भवारिसाणं, घोरसिवेण भणियं-महाराय ! अलमलं मम पासंडिचंडालस्स
घोरशिवेन भणितम्-महाभाग ! मैवमुल्लप, जीव त्वं मम जीवितेनापि यावजलधिकुलशैलशशितारकदिवाकरान , प्रसीद मयिवितर एकं प्रसादमिति । राज्ञा भणितम्-किमेवं व्याहरसि ? जीवितदानादपि किमपरमदेयं ? तस्मादसम्भ्रान्तः प्रार्थय । घोरशिवेन भणितम्-यद्येवं तर्हि अनुजानीहि ममैतस्मिन् प्रज्वलज्वालासहस्रकवलितशलभकुलसङ्कले दीप्यमानार्धदग्धकलेवरोच्छलविस्रगन्धो. दरे श्मशानहुताशने प्रवेशोद्यम, भव धर्मबन्धुः, नान्यथा मे पूर्वविहितमहापापपर्वताऽऽक्रान्तस्यावश्यं विनामो भविष्यतीति, राज्ञा भणितम्-कुतस्तव पूर्व पापसम्भवः ? यतः कृतानि त्वया विविधानि तपश्चरणानि, आपूरितानि पापभक्षणदक्षाणि मन्त्रध्यानानि, पूजितानि देवक्रमकमलानि, निवर्तितानि वेदरहस्याध्ययनानि, उपासितो गुरुजना, प्रवर्तिता धर्ममार्गेषु प्राणिनः, तस्मान्न सर्वथा वक्तुमपि युक्तमेतद् भवादृशानाम् । घोरशिवेन भणितम्-महाराज ! अलमलं मम पापण्डिचाण्डालस्य
॥२७॥
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