Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नृपान्तिके घोरशिवस्यागमनम् । CRACT ___ एवं सोचा रन्ना को उहलेण भणिया पहाणपुरिसा-अरे आणेह तं सिग्धमेव, ज देवो आणवेइत्ति भणिऊग निखता नरविक्रम- ते य रायभवणाओ, गया तस्सासमपयं, पणमिऊग निवेड्यं से आगमणप्पओयग, तओ हरिसुप्फुल्ललोयणो कयकिच्चमप्पाणं चरित्रे । 18 मन्नतो तो चलिओ घोरसिवो रायपुरिसेहि समं, पत्तो य रायभवणं, दुवारपालनिवेइओ गओ रायसमीर्व, दिनासणो उव विट्ठो, सम्माणिओ उचियपडिवत्तीए नरवइणा, खतरे य पुच्छिओ एसो-भयवं! कयरीओ दिसाओ आगमगं? कत्थ वा ॥१४॥ गंतवं ? किं वा एत्थावत्थाणप्पओयणति ? घोरसिवेण भणियं-महाराज ! सिरिपत्वयाओ आगोऽम्हि, संपयं पुण उत्तरदि. सिसुंदरीसवणकन्नपुरे जालंधरे गन्तुमिच्छामि, जं पुण पुच्छह अवत्थाणपओयणं तत्थ य तुम्ह दंसणमेव, संपर्य एयपि सिद्धति, नरवइणा भणियं-भयवं ! निरवग्गहा सुणिजह तुम्ह सत्ती मंततंतेसु ता दंसेसु किंपि कोउगं, तओ जं महाराओ निवेयइत्ति एवं श्रुत्वा राज्ञा कुतूहलेन भणिताः प्रधानपुरुषा:-अरे आनयत तं शीघ्रमेव, यदेव आज्ञापयतीति भणित्वा निष्कान्तास्ते च राजभवनात् गतास्तस्याऽऽश्रमपई, प्रणम्य निवेदितं तस्याऽऽगमनप्रयोजनं, ततो हषात्कुललोचनः कृतकृयमात्मानं मन्यमानस्ततश्चलितो घोरशिवो राजपुरुषैः समं, प्राप्तश्च राजभवन, द्वारपालनिवेदितो गतो राजसमीपं, दत्ताऽऽसन उपविष्टः, संमानित उचितप्रतिपत्त्या नरपतिना, भगान्तरे च पृष्ट एष:-भगवन् ! कतरस्या दिशाया आगमनम् ? कुत्र वा गन्तव्यम् ? किं | वाऽत्रावस्थानप्रयोजनमिति?, घोरशिवेन भणितम्-महाराज! श्रीपर्वतादागतोऽस्मि, साम्प्रतं पुनः उत्तरदिशासुन्दरीश्रवणकर्णपूरे जालन्धरे गन्तुमिच्छामि, यत्पुनः पृच्छथावस्थानप्रयोजनं तत्र च युष्माकं दर्शनमेव, साम्प्रतमेतदपि सिद्धमिति । नरपतिना भणितम्-भगवन् ! निरवग्रहा श्रयते तव शक्तिमन्त्रतन्त्रेषु तस्माद्दर्शय किमपि कौतुकम्, ततो यन्महाराजो निवेदयतीति RCHESTR-% ERO R ॥१४॥ For Private and Personal Use Only

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