Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
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श्री नरविक्रमचरित्रे ।
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एसो, घोरसिवेणावि आलिहियं मंडल, निसन्नो तहिं निबद्धं तर्हि पउमासणं, कयं सकलीकरणं, निवेसिआ नासावसग्गे दिट्ठी, कओ पाणायामो, नायविंदुलवोववेयं आढलं मंतसुमरणं, समारूढो झाणपगरिसंमि । इओ य चिंतियं राहणा- अहं किर y for गाहिओ मंतीहिं, जहा अविस्मासो सवत्थ कायवोत्ति, निवारिओ य सङ्घायरं पुणो पुणो एएण जहा अणाहूण तए नागंतांति, ता समहियायशे य जणइ संकं, न एवंविहा कावालियमुणिणो पाएण कुमलासया हवंति, अओ गच्छामि सणियं मणिमेस समोवं, उवलक्खेमि से किरियाकलावंति विगप्पिउं जान पट्टिओ ताव विष्फुरियं से दक्खिणलोयणं, तओ निच्छियबंछियत्थलाभो करकलिय करवालो कसिणपडकयावगुंठणो मंद मंद भूमिविमुकचरणो गंतूण पुट्ठिदेसे ठिओ घोरसिवस्स, सुणिउमाढतोय, सोय झाणपगरिमत्तणेण अणावेक्खिय अवायं अविभावि पडिकलतं विहिणो अविनायतदागमणो निषण्णस्तत्र, निबद्धं तत्र पद्मासनं कृतं सकलीकरणं, निवेशिता नासावंशाग्रे दृष्टिः कृतः प्राणायामः, नादबिन्दु वोपेतधं मन्त्रस्मरणं, समारूढो ध्यानप्रकर्षे । इतश्च चिन्तितं राज्ञा-अहं किल पूर्व शिक्षां ग्राहितो मन्त्रिभिः, यथा - अविश्वासः सर्वत्र कर्तव्य इति, निवारितश्च सर्वादरं पुनः पुनरेतेन यथा - अनाहूतेन त्वया नाऽऽगन्तव्यमिति, तस्मात् समधिकादरश्च जनयति शङ्कां नैवंविधाः कापालिक मुनयः प्रायेण कुशलाशया भवन्ति, अतो गच्छामि शनैः शनैरेतस्य समीपम् उपलक्षयामि तस्य क्रियाकलापमिति विकल्य यावत्प्रस्थितस्तावद्विस्फुरितं तस्य दक्षिणलोचनम्, ततो निश्चितत्राञ्छितार्थलाभः करकलितकरवाल: कृष्णपटकृतावगुण्ठनो मन्दं मन्दं भूमिविमुक्तचरणो गत्वा पृष्ठदेशे स्थितो घोरशिवस्य श्रोतुमारब्धश्च स च ध्यानप्रकर्षत्वेन अनवेक्ष्यापायम्, अविभाव्य प्रतिकूलत्वं विधेरविज्ञाततदागमनो
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कपटकलाकुशल
धोरशिवेन
आरब्धं
मन्त्र
स्मरणम् ॥
॥ १९ ॥

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