Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
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श्री नरविक्रम
चरित्रे ।
CRECISARKARI
पडिवजिय तेहिं तेहिं दिविवंचणदेवयावयारण नरवेहपुष्फवेहनदुमुट्टि मुहदुक्खपरिजाणणप्पमुहकोऊहलेहि वसीकयं घोरसिवेणं [ राजसभायां नरिंदचित्तं, अह अवसरं लहिऊण भणियं राइणा-भयचं ! किं एएसु चेत्र कोऊहलेसु तुह विनाणपगरिसो उआहु अन्नत्थवि | मन्त्रजाअस्थि ?, मुणिणा भणियं-किमेवमसंभावणागम्भमम्हारिसजणाणुचियं वाहरसि ?, एगसद्देणेव साहेमु जं दुकरंपि कीरइ, || लाविष्कतओ राइणा निवेइओ पुत्तजम्मलाभविसओ वुनंतो, घोरसिवेण भणियं-किमेत्तियमेत्तेण किलिस्ससि ? अहमेयमढे अकालेवि रणम् ॥ अविलंबं पसाहेमि, राइणा भणियं-जइ एवं ता परमोऽणुग्गहो, केवलं को एत्थ उवाओ?, घोरसिवेण भणियं-एगंते निवेयहस्सं, तओ उक्खिचा कुवलयदलसच्छाहा मंतीसु राइणा दिट्ठी, उट्ठिया य इंगियागारकुसला सणियं सणियं नरिंदपासाओ मंतिणो, जायं विजणं, घोरसिवेण जंपियं-महाराय! कसिणच उद्दसीनिसिए मए बहुपुष्फफलधूवक्खयबलिभक्खपरियरेण तुमए सह प्रतिपद्य तैस्तैदृष्टिवञ्चनदेवताऽवतारणनरवेधपुष्पवेधनष्टमुष्टिसुखदुःखपरिज्ञानप्रमुखकुतूहलैर्वशीकृतं घोरशिवेन नरेन्द्रचित्तं, अथावसरं लब्ध्वा भणितं राज्ञा-भगवन् ! किमेतेषु एव कुतूहलेषु तव विज्ञानप्रकर्ष उताहो अन्यत्राप्यस्ति?, मुनिना भणितम्किमेवमसम्भावनागर्भमस्मादृशजनानुचितं व्याहरसि ?, एकशब्देनैव कथय यद्दष्करमपि क्रियेत ततो राज्ञा निवेदितः पुत्र जन्मलाभविषयो वृत्तान्तः, घोरशिवेन भणितं-किमियन्मात्रेण क्लिश्यसे? अहमेतदर्थमकालेऽपि अविलम्बं प्रसाधयिष्यामि, राज्ञा भणितम्-यद्येवं तर्हि परमोऽनुग्रहः, केवलं कोऽत्रोपायः ?, घोरशिवेन भणितम्-एकान्ते निवेदयिष्यामि, तत उरिक्षता कुवलयदलसच्छाया मन्त्रिषु राज्ञा दृष्टिः, उत्थिताश्च इङ्गिताकारकुशलाः शनैः शनैनरेन्द्रपार्थात् मन्त्रिणः, जातं विजनं, घोरशिवेन भणितम्महाराज | कृष्णचतुर्दशीनिशायां मया बहुपुष्पफलधूपाक्षतबलिभापरिकरेण स्वया सह
॥१५॥
ACCHEARCH
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