Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
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श्री नरविक्रमचरित्रे ।
॥ १३ ॥
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जड़ एवं ता निसामेहि, अस्थि व साहियपयंड चंडियाविओ मुंडमालालंकियविग्गहो निउणो पिसायसाहणेस साहसिओ साइणीनिग्गहे कयकरणो खेत्तवालावयारेसु खोदक्खमो कन्नविजासु ओसहीसहस्ससंपिडरसायणपाणपणासियजराविरो विवरवेस परितोसियज क्खिणी लक्ख परिभोगप्पयारपरूवणपंडिओ महवयवेसधारी घोर सिवो नाम तबस्सी । अयि - आगमि पगिट्ठो खुन्नो पन्नगमहाविसुद्धरणे । विक्खेवकरणदक्खो अमृढलक्खो वसीकरणे ॥ १ ॥ जं सत्सु न सिहं बंधुरबुद्धीहिं पुवपुरिसेहिं । जं नो पुढकईणवि कर्हिपि महगोयरंमि गयं ।। २ ।। जुत्तीहिवि जं विहड सुपि जं सद्दहंति नो कुसला । जं सुइरंपि हु दिहं संदिज्झह तंपि दंसे || ३ || ( जुम्मं ) भइ य अस्थि असझं मज्झं भुवणत्तवि नो किंपि । जइ सो एयसमत्थो एत्थवि देवो पमाणंति ॥ ४ ॥ यद्येवं तर्हि निशमय अस्तीद्दैव साधित प्रचण्डचण्डिका विद्यो मुण्डमालाऽलङ्कृतविग्रहो निपुणः पिशाचसाधनेषु, साहसिक : शाकिनीनिग्रहे, कृतकरण: क्षेत्रपालावतारेषु, क्षौद्रक्षमः कर्णविद्यासु औषधि सहस्र संपिष्ट रसायनपानप्रणाशितजराविधुरो विवरप्रवेशपरितोषित यक्षिणीलक्षपरिभोगप्रकारप्ररूपणापण्डितो महाव्रतिक वेषधारी घोरशिवो नाम तपस्वी ।
।। १ ।।
।। २ ।।
अपि च- आकृष्ट प्रकृष्टः क्षुण्णः पन्नगमहाविशुद्धरणे । विक्षेपकरणदक्षोऽमूढलक्षो वशीकरणे यच्छास्त्रेषु, न शिष्टं बन्धुरबुद्धिभिः पूर्वपुरुषैः । यन्नो पूर्वकवीनामपि कस्मिन्नपि मतिगोचरे गतम् युक्तिभिरपि यद्विघटति श्रुतमपि यच्छ्रद्दधति नो कुशलाः । यत्सुचिरमपि हु दृष्टं सन्दिह्यते तदपि दर्शयति ॥ ३ ॥ [युग्मम् ] भणति चास्ति असाध्यं मम भुवनत्रयेऽपि नो किमपि । यदि स एतत्समर्थोऽत्रापि देवः प्रमाणमिति || 2 ||
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मन्त्रिणा कृतं घोर
शिवस्य मन्त्रशक्ते
वर्णनम् ॥
॥ १३ ॥

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