Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri

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Page 99
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie युवतिरक्षा || नरविक्रमचरित्रे। ॥९ ॥ HOROSCORECASE सोवि करिवरो दढरोसभररत्तणेत्तो संपत्तो तीसे थेवंतरेण, दिट्ठा य सा कुमारेण भयवसभूमिनिस्सहनिवडियंगी, चिंतियं च-अजुत्तमजुत्तमियाणि उवेहणं एयाए, जओ एक अबला एसा अन्नं गुरुगभभारविवसंगी। अन्नं पुण मुच्छाए निमीलियच्छी धरणिपडिया ॥१॥ अन्नं च पुणो तायस्स एस जयकुंजरो अतीव पिओ। सत्येण न हतब्बो विसममिमं निवडियं कजं ॥ २॥ अहवा रूसउ ताओ जं भवइ तं करेउ मम इहि । हतब्बो एस करी 'दुबलजणपालणं धम्मो' ॥३॥ इय निच्छिऊण निबिडबद्धदुगुलंचलो तुरंगाओ अवयरिऊण अवलोइजंतो नरनारीजणेण निवारिजंतो पासवत्तिपरियणेण पडिखलिजमाणो अंगरक्खेहिं निरवेक्खो नियजीवियस्स सिग्धं पधाविऊण मेहस्स व मयजलासारपसमियरयनियरस्स सोऽपि करिबरो दृढरोषभररक्तनेत्रः सम्प्राप्तस्तस्याः स्तोकान्तरेण, दृष्टा च सा कुमारेण भयवश भूमिनिस्सहनिपतिताङ्गी, चिन्तितं च-अयुक्तमयुक्तमिदानीमुपेक्षणं एतस्याः, यत: एकमवला एषा अन्यद् गुरुगर्भभारविवशाङ्गी। अन्यत् पुनर्मूर्छया निमीलिताक्षी धरणिपतिता ॥१॥ अन्यच पुनस्तातस्य एष जयकुञ्जरोऽतीव प्रियः । शवेण न हन्तव्यो विषममिदं निपतितं कार्यम् ॥२॥ अथवा रुष्यतु तातो यद्भवति तत्करोतु ममेदानीम् । हन्तव्य एष करी “ दुर्बलजनपालनं धर्मः” ॥३॥ इति निश्चित्य निबडबद्धदुकूलाञ्चलस्तुरङ्गादवतीर्यावलोक्यमानो नरनारीजनेन निवार्यमाणः पार्श्ववर्तिपरिजनेन प्रतिस्खल्यमानोऽगरक्षकैनिरपेक्षो निजजीवितस्य शीघ्र प्रधाव्य मेधस्येव मदजलाऽऽसारप्रशमितरजोनिकरस्य ACADCASCHARCHERS ॥९१ For Private and Personal Use Only

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