Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri

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Page 66
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नरविक्रम चरित्रे । जयशेस नरागमनम् ।। ।। ५८॥ CHOCOMSANCHESTECEN निंदसु पइक्रवणं दुकयाई निसुणेसु धम्मसस्थाई । उत्तमसंसम्गि कुगसु चयसु तिवं कसायं च ॥ ८॥ ईसाविसायमुच्छिद भिंद विसमविसयतरुनियरं । नियजीयनिविसेसं नीसेसं पेच्छ पाणिगणं ॥ ९ ॥ पसमरसं पिबसु सया दूरं परिहरसु खुद्दचरियाई । जुत्ताजुत्तं वियारसु सबकन्जेसु जत्तेण ।। १० ।। खणपरिणइधम्मत्तं चिंते सु भवंमि सववत्थूणं । नियसुकयदुकयसचिवत्तणं च लक्खेसु परजम्मे ॥ ११ ॥ इय जयमाणस्स सया सुद्धी तुझं भविस्सइ अवस्सं । जलणपवेसं सलभा कुणंति कुसला उन कयावि ।। १२ ।। एवं संठविऊण मरणदुरज्झवसायाओ घोरसिवं जाव विरओ नरिंदो ताव पहयपडहमुखपमुहतूरनिनायबाहिरियदियंतरा विचित्तमणिभूसणकिरणकब्बुरियमसाणंगणा गयणाओ ओयरिया विजाहरा, परमपमोयमुव्वहंता निवडिया घोरसिवचरणेसु, निन्द प्रतिक्षणं दुष्कृतानि निशृणु धर्मशास्त्राणि । उत्तमसंसर्ग कुरु त्यज तीनं कषायं च ॥ ८ ॥ ईयाविषादमच्छिन्धि भिन्धि विषमविषयतरुनिकरम् । निजजीवनिर्विशेष निःशेषं पश्य प्राणिगणम् ॥९॥ प्रशमरसं पिब सदा दूरं परिहर क्षुद्रचरितानि । युक्तायुक्तं विचारय सर्वकार्येषु यत्नेन ॥ १० ॥ भणपरिणतिधर्मत्वं चिन्तय भवे सर्ववस्तूनाम् । निजसुकृतदुष्कृतसचिवत्वं च लक्षय परजन्मनि इति यतमानस्य सदा शुद्धिस्तव भविष्यति अवश्यम् । ज्वलनप्रवेशं शलभाः कुर्वन्ति कुशलास्तु न कदापि ॥ १२ ॥ एवं संस्थाप्य मरणदुरव्यवसायाद् घोरशिवं यावद् विरतो नरेन्द्रस्तावत् प्रहतपटमुरजप्रमुखतूर्यनिनादबधिरितदिगन्तरा विचित्रमणिभूषणकिरणकर्बुरितश्मशानाङ्गाना गगनादवतीर्णा विद्याधराः परमप्रमोदमुद्वन्तो निपतिता घोरशिवचरणयोः, भणितुमारब्धाश्च CHACHCROCCORG ॥५८॥ For Private and Personal Use Only

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