Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri

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Page 53
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री नरविक्रम चरित्रे | ।। ४५ ।। www.kobatirth.org वडंतदहणनिदज्झमाणेसु वेणुगहणेसु पजलंत पईवसिहाभी सण विष्फुरंतरत्तलोयणेसु इओ तओ वियरंतेसु निसायरगणेसु वराहतिखदादुकिष्णलेनियरुच्चावच्चासु वणत्थली अमुनियमग्गुम्मग्गो विमूढदिसाभागो असोढपयप्पयारो एकमि गुरुतरुबरे समारुहिउं साहाए पसुतोहि, दुट्ठमहिलन्त्र कट्ठेण समागया निद्दा, पच्छिमरयणिसमए य जामकरिघडम्व पासमल्लीणा चित्ता पबोहमंगलतूरेहिं पिव रसियं पुराणसियालेहिं मागहेहिं व पढिये सुयगणेहिं, अह उइयंमि सयलतिहुयण भुवणप्पईवंमि दिवायरंमि उडिऊण कयपाभाइय किच्चो ओयरिऊण तरुत्रराओ एकदिसाए पयट्टो गंतुं, खणंतरेण य तरुणतरुचकलावबद्धपरियरो कोदंडकंडवावडकरो नियपणहणीए अणुगम्ममाणो गुंजाफलमालियामेत्तकयाभरणी भुयंगकंचुयनिव्वत्तिय केस कलावसंजमणो तक्खणविणिवाइय सिहंडिस सिह मुहविरहय कन्नपूरो दिट्ठो एक्को पुलिंदो, सो य पुच्छिओ मए - भो महाणुभाग ! का पतद्दन निर्दह्यमानेषु वेणुगहनेषु प्रज्वलत्प्रदीपशिखाभीषण विस्फुरद्रक्तलोचनेषु इतस्ततो विचरत्सु निशाचरगणेषु वराहतीक्ष्णदंष्ट्रोत्कीर्णलेष्ठुनिक रोश्चावचासु वनस्थलीषु अज्ञातमार्गोन्मार्गो विमूढदिग्भागोऽसोढपदप्रचार एकस्मिन् गुरुतरुवरे समारुह्य शाखायां प्रसुप्तोऽहं, दुष्टमहिलेव कष्टेन समागता निद्रा, पश्चिमरजनीसमये च यामकरिघटा इव पार्श्वमालीनाश्चित्रकाः प्रबोधमङ्गलतूर्यैरिव रसितं पुराणशृगालैः मागधैरिव पठितं शुकगणैः; अथोदिते सकलत्रिभुवनभवनप्रदीपे दिवाकरे उत्थाय कृतप्राभातिककृत्योऽवतीर्य तरुवरादेकदिशि प्रवृत्तो गन्तुं क्षणान्तरे च तरुणतरुचक्रवालबद्धपरिकरः कोदण्डकाण्डव्यापृतकरो निजप्रणयिन्याऽनुगम्यमानो गुञ्जाफलमालिका मात्रकृताऽऽभरणो भुजङ्गकञ्चुक निवर्तित केशकलाप संयमनस्तत्क्षणविनिपातित शिखण्डि सशिखमुखविरचितकर्णपूरो दृष्ट एक: पुलिन्दः, स च पृष्टो मया-भो महानुभाग ! कैषाऽटवी ? For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अटव्यां पुलिन्द्रस्य सम्प्राप्तिः ॥ ॥ ४५ ॥

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