Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्री नरविक्रमचरित्रे |
।। ७६ ।।
www.kobatirth.org
पउमावईए पेसिया सीलवई कण्णगा पिउणो पायवडणत्थं, चेडीचक्कवालपरिवुडा य सा पत्ता नरिंदसगासे, निवडिया चरणे, निवेसिया रण्णा उच्छंगे, पुच्छिया य-पुत्ति ! केण कारणेण आगयाऽसि ?, तीए भणियं - ताय ! तुम्ह पायपडणनिमित्तं अम्मगाय पेसियहि, राइणा चितियं-- अहो बरजोगत्ति कलिऊणं नूणं देवीए पेसिया, ता किमियाणिं कायव्वं :एकं चिय मह तणया परूढपणयाऍ अग्गमहिसीए । एसा वरस्स जोग्गा को पुण एयाऍ होज वरो १ ॥ १ ॥ या चित्तवित्ति अवियाणिय जइ वरेज निवपुत्तो । जो वा सो वा आजम्म दुक्खिया होज ता एसा ॥ २ ॥ इति परिभाविऊण पुच्छिया सा नरवणा-पुत्ति ! को तुज्झ वरो दिजइ ? किं सुरूवो उयाहु समरंगणसवर्डमुहसुहडपडिक्खलणपयंडपरकमो किं वा समरभीरुओत्ति, तओ ईसि विहसिऊण भणियं तीए-ताओ जाणइ, राइणा भणियं - पुति !
पद्मावत्या प्रेषिता शीलवती कन्यका पितुः पादपतनार्थ, चेटीचक्रवालपरिवृता च सा प्राप्ता नरेन्द्रसकाशे निपतिता चरणयोः, निवेशिता राज्ञा उत्सङ्गे, पृष्टा च पुत्रि ! केन कारणेनाऽऽगताऽसि ?, तथा भणितं तात ! युष्माकं पादपतननिमित्तमम्बया प्रेषिताऽस्मि, राज्ञा चिन्तितम् - अहो ! बरयोग्येति कलयित्वा नूनं देव्या प्रेषिता, तस्मात् किमिदानीं कर्तव्यम् ?
।। १ ।।
एकमेव मम तनया प्ररूढप्रणयाया अय्यमहिष्याः । एषा वरस्य योग्या कः पुनरेतश्या भवेद्वरः एतस्याश्चित्तवृत्तिमविज्ञाय यदि वृणुयान्नृपपुत्रः । यो वा स वा आजन्म दुःखिता भवेत् तदैषा
॥ २ ॥
इति परिभाव्य पृष्ठा सा नरपतिना - पुत्रि ! कस्तव वरो दीयते ? किं सुरूप उताहो समराङ्गणसंमुखसुभट प्रतिस्खलनप्रचण्डपराक्रमः किं वा समरभीरुक इति ?, तत ईषद् विहस्य भणितं तया-तातो जानाति राज्ञा भणितं पुत्रि !
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नरेन्द्र
सकाशे
शीलवती
समा
गमनम् ॥
॥ ७६ ॥

Page Navigation
1 ... 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150