Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
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श्री नरविक्रमचरित्रे |
॥ ४१ ॥
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सो दंसिओ य तेसिं तो ते दट्टण तस्स पडियरणं । अच्चतहरिसियमणा मं पह भणिउं समादत्ता || २६ ॥ संमं कथं नराहिब ! जमेवमेयस्स पालणा विहिया । जं एयकए बाढं परितप्पड़ खयरनरनाहो ॥ २७ ॥ एयरस मग्गणकए सवत्थवि पेसिया खयरसुहडा । जं एको चिय पुत्तो एसो सिरिखयरनाहस्स ॥ २८ ॥ ता जयसेइरकुमरं पेसह एयं जहा समप्पेमो । सुहिसयणजणणिजणयाण दंसणुकंठियमणाणं ।। २९ ।। भणिओ मए स खयरो कुमार ! तुह परियणो भणइ किंपि । ता साह तुमं चिय किं पुणेसि पच्चुत्तरं देमो ॥ २० ॥ कुमरेण तओ भणियं एगत्तो तुज्झ असरिसो पणओ। एगत्तो गुरुविरहो दोन्निवि दोलंति मह हिययं ॥ ३१ ॥ ता विभियण दिवयरयणभायणाईहिं । सम्माणिऊण कुमरो सङ्काणं पेसिओ स मए ॥ ३२ ॥ स दर्शितश्च तेषां ततस्ते दृष्ट्वा तस्य प्रतिचरणम् । अत्यन्त हर्षितमनसो मां प्रति भणितुं समारब्धाः सम्यक्कृतं नराधिप ! यदेवमेतस्य पालना विहिता । यदेतत्कृते बाढं परितप्यते खचरनरनाथः एतस्य मार्गणकृते सर्वत्रापि प्रेषिताः खचरसुभटाः । यदेक एव पुत्र एष श्रीखचरनाथस्य तस्माज्जयशेखरकुमारं प्रेषयतैतं यथा समर्पयामः सुहृत्स्वजननी जनकानां दर्शनोत्कण्ठितमनसाम् भणितो मया स खचरः कुमार ! तब परिजनो भणति किमपि । तस्मात् कथय त्वमेव किं पुनरेषां प्रत्युत्तरं दद्मः ॥ ३० ॥ कुमारेण ततो भणितमेकतस्तवासदृशः प्रणयः । एकतो गुरुविरहो द्वावपि दोलयतो मम हृदयम् तदा विशिष्टभोजन दिव्यांशुक रत्नभाजनादिभिः । संमान्य कुमारः स्वस्थानं प्रेषितः स मया
॥
।। २७ ।।
॥ २८ ॥
॥ २९ ॥
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३१ ॥ ॥ ३२ ॥
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२६ ॥
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जयशेखरान्वेषणार्थ
विद्याधरा
णामा
गमनम् ॥
॥ ४१ ॥

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